In January 2015 i was visiting different remote villages of Mithila and Magadh region of Bihar. The stories of the villages were inspirational with recent intervention of different developmental policies penetrating deep inside the Rural belt. The recent upsurge of the large number of developmental work in the Rural belt which uplifted the living standard of thousands of the people were widely visible everywhere in the villages. The new light of development in the shape of schools, hospitals, road, bridge, anganwadis, and other yozana has totally changed the fortune of the village life in last ten year, as never before and involve the common people in the polices framework.
There was no doubt that the fortune of the village has changed a lot and pumping of money directly in the Panchyat through the democratic means has seen rapid increase in the last one decade. The decentralization of planning at the lowest level of the democracy has increased but still there is a big gap. The monetary rights was still prohibited with the burocrats and the Panchyat member have very less say in the planning process of the developmental plan, as the planning are done at the Central and State level and the Panchyati raj institution have to just act like an implementing body.
And this is the main reason behind the underperformance of several developmental plan designed for the Rural India.
1. गाँव के बीचोबीच एक स्कूल है | स्कूल के चार कमरे में 500 बच्चे पढ़ते हैं | नया भवन बनाने के लिये पैसा आया लेकिन जमीन के अभाव में नक्शा पास नहीं हुआ | गाँव वालो ने दो मंजिला भवन बनाने की बात कि, लेकिन अनुमती नहीं मिला | आज भी स्कूल का हाल बेहाल है और बच्चे खुले कंपाउंड में बैठ कर पढने को मजबुर हैं | मिथिला से आखों देखा...
2. गाँव के बाहर सरकारी जमीन में 15 कमरे का स्कूल बना और बच्चे वहां पढने नहीं जाते | मगध से आखों देखा...
3. एक ग्राम पंचायत में 5 स्कूल में कुल मिला कर 50 नये कमरे बने हैं और दस शिक्षक भी नहीं है | गया से आखों देखा...
इन दिक्कतों का मुख्य कारण पंचायती राज सदस्यों का योज़ना बनाने में न के बराबर की हिस्सेदारी है | दिल्ली और पटना में बैठे चंद लोग मिल कर योज़ना बना देते हैं और गाँव के लोगो के जरुरत के हिसाब से इन योज़नाओं की उपयोगीता सिद्ध नही हो पाता है, फिर जनता के पैसे का सही उपयोग नहीं हो पाता है | सर्व शिक्षा अभियान के पैसे से ग्रामीण स्तर पर शिक्षा के छेत्र में काफी काम तो हुआ लेकिन आम जनता को उसका उचित फायदा नहीं मिल सका | अगर इस पैसे को हमने ग्राम पंचायत के चुने हुए सदस्यों के जरिये खर्च करने की कोशिश की होती तो आज आज बिहार में शिक्षा के स्तर में काफी सुधार देखने को मिलता |
दिल्ली लॉबी हमेशा इस डर को दिखा कर ग्राम पंचायत में पैसे के हस्तांतरन को रोकने की कोशिश करती है कि गाँव में पैसा का बंदरबाँट होगा और कुछ मुट्ठी भर लोग इस पैसा का अपने हिसाब से इस्तेमाल करेंगे | लेकिन कुछ मुट्ठी भर लोग जिनका जमीनी सचाई से कुछ लेना देना नहीं होता, वो दिल्ली में बैठ कर करोड़ो गाँव के लोगो के लिए योज़नाएं बना देते हैं, तब उस में कोई दिक्कत नहीं आती है | कम से कम ये मुट्ठी भर लोग गाँव समाज के ही तो होंगे और उन्हें समाज के प्रति जबाबदेह भी रहना होगा | सामाजिक बंधन और गाँव समाज के प्रति जबाबदेही उन्हें गलत काम करने से रोकेगा और दिल्ली लॉबी के अपेक्षा ग्रामीण स्तर पर लाख गुना अच्छा काम होगा |