मैं तुमसे मिलने आया था | जबसे तुझे देखा न, तुमसे दुवारा मिलने की इक्छा दिल के किसी कोने में जा कर बैठ गया था | न जाने तुम कितनी बार याद आयी मुझे | जब भी अकेला बैठता तेरी सुरत मेरे आखों के सामने आ ही जाती | तेरी वह मुस्कराहट और चेहरा का लज्जा पूर्ण भाव मुझे हमेशा बुलाती रहती | वह सर से चुनरी का धीरे से सरकाना और कनखियों से मुझे देखते जाना भी याद था मुझे |

तेरे होठों पर लगी गहरी लाल रंग की लिपिस्टिक को देख ही तो मैं तुम्हारे तरफ खिचंता चला आया था | वह लाल लिपिस्टिक आज भी मेरे आखों के पास यूँ ही तैर रहा है | वो शर्मों-हया से भरी मुस्कान और हल्का सा चेहरे का लाल होना आज भी मुझे बैचैन करती है | तुम्हारे गोरे बदन पर कढाई की हुई हरी रंग की सलवार और गुलाबी रंग की चुनरी सब कुछ मेरे आखों में समाया हुआ है | वह पहली मुलाकात की खुशबू अभी भी महसूस करता हूँ मैं |

उस मुलाकात के कुछ घंटो बाद ही तुम्हें मेला में देखा था | वह अकास्मात भेंट भी याद आता रहता है | तेरी वो संगनी मुझे कहीं से भी अच्छी नहीं लगी वो भी मुझे याद है | और हाँ जब तुम सामने से निकल गयी तो मेरे होठं फर्फराये थे कुछ कहने को वो भी याद है मुझे | मैंने अपने कि काफी कोसा भी था ये भी याद है | और फिर तुम उस मेला के रेलमपेल में खो सी गयी थी | तेरी इंतजार में गेट पर खड़ा होने का ख्याल दिल में आया था लेकिन पता नहीं क्यों मैं जा कर खड़ा नहीं हो पाया इसका भी पछतावा है |

आज काफी दिनों बाद तुझे देखा तो पता चला की तुम तो काफी बदल गयी | अब तेरे ओठों पर न लाल लिपिस्टिक की चमक थी न चेहरे पर वो शर्माहट वाली मुस्कान | एक पतली सी चश्मे ने तेरे कटीली नयनों को ढँक रखा था | दुर से ही देखा तुझे, एक पल रुका और कुछ सोच कर आगे बढ़ गया | कुछ नही कह पाया तुम्हें, नयनों की भी आपस में मुलाकात नहीं हुई | तुम उसी टीबी में चिपकी बस अपनों में खोई रही | वह रोमांच न जाने कहीं खो सा गया | अब तेरे ओठों पर न लिपिस्टिक रही , न वो रोमांचित कर देने वाली गुलाबी चुनरी |

तुम काफी बदल गयी थी | समय के थपेड़ो ने तुझे भी अपने आगोश में ले लिया था | तेरी नयी रूप रंग और वो जींस टीशर्ट मुझे कहीं से भी नहीं जंची | वो ब्यूटी पार्लर में निखारे गये तुम्हारे बाल ने मेरा थोड़ा सा भी ध्यान नहीं खिचां | तुझे देख मैं अपने पुराने ख्यालों में व्यर्थ ही खो सा गया | तेरे गालो की लाली, क्रीम का रगड़ खा निखर तो गया, लेकिन अब उसमें वो बात कहाँ | तेरे पास यूँ ही खड़ा तुझे एक पल के लिए देखा, तो दिल बैठता सा महसूस हुआ | तेरी नजरें भी नहीं उठी टीबी के रंगबिरंगे पर्दे से तो मैं भी, अपने सपनो को टूटता हुआ देख नहीं सका | अपनी राह पर आगे बढ़ गया था तन्हा सा, मानो इस परदेश में मेरा कोई नहीं | तुम्हारे में आये बदलाव ने कहीं से भी मेरे साथ न्याय नहीं किया और मैं भी इसे बर्दास्त नहीं कर सका | एक अनकही रोमांच से भरी प्रेम कहानी यहीं खत्म सी हो गयी और पशचीम यूपी से सदा के लिए नाता टूट गया |

Tags: True Story

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