बिहार के किसी ब्लाक कार्यालय पर आप चले जाईये, लोगो का रेलमपेल देखकर आपको काफी आश्चर्य होगा | कार्यालय और उसके अगल बगल मेला के समान भीड़ जमा रहता है और हर जाती, धर्म, लिंग, आयु वर्ग के लोग इधर - उधर भागते हुए मिल जायेंगे | आसपास के चाय नास्ता के दुकान पर जमघट लगी रहती है, और लोग अपने हाथो में फाइल लिए सिर्फ भागते हुए ही नजर आते हैं |
आप इसे बिहार में पिछले दस बरसो में बहे विकास के गाथा के तौर पर प्रस्तुत करें या पंचायती राज व्यवस्था का नाकाम होने के तौर पर, लेकिन दोनों स्थिति में यह हमारी व्यवस्था में आया क्रांतिकारी बदलाव की ओर इशारा करता है | दबे कुचले पिछरे वर्ग में यह एक नया बदलाव का घोतक है और उनके मन में शासन व्यवस्था के प्रति एक सकारात्मक लगाव को दर्शाता है | सरकारी काम में अपनी हिस्सेदारी लेने के तौर पर इसे देखा जा सकता है |
पिछले कुछ सालो में बिहार के शासन व्यवस्था का पहुँच अन्दर के गाँव तक फैला है | इस दौर में लाखों लोगों ने पहली बार सरकारी कार्यलाय का चक्कर लगाना शुरू किया है और उनके आखों में विकास कार्यों में अपने हिस्सेदारी प्राप्त करने के प्रति एक ललक दिखती है | लेकिन हमारी यहाँ पहुँच बहुत ही शीमित हो जाती है और पंचायती राज व्यवस्था की उपयोगिता यहाँ बढ़ जाती है | लेकिन इस दौर में जहाँ बिहार सरकार ने हरेक पंचायत में कम से कम दस कर्मचारियों को बहाल किया है लेकिन दुर्भाग्य बस ये लोग पंचायत कार्यालय में कम ही काम करते हुए नजर आते हैं गरीबों को किसी काम के लिए ब्लाक से लेकर जिला मुख्यालय तक का चक्कर लगाना पड़ता है |
अगर पंचायती राज व्यवस्था ढंग से अपना काम करने लगे तो गाँव के लोगो के जीवन में एक नया सवेरा आ जायेगा | लोगों का जीवन बहुत ही आसन हो जायेगा और नए तरह के विकास का वातावरण का निर्माण होगा | सरकारी पैसा का जो बड़े पैमाने पर दुरूपयोग जिला और ब्लाक कार्यलाय में होता है, लोगो की हिस्सेदारी बढ़ने से उसमें कमी आयेगी और " सबका साथ सबका विकास " कल्पना में न रह कर सच्चाई में जमीन पर साकार होगा |