शहरी ट्रांसपोर्ट के लिये मेट्रो को इस देश में एक विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करने की कोशिश की जा रही है वो भारत जैसे विकासशील देश के लिए दुर्भाग्य की बात है | मेट्रो परियोज़ना न केवल महंगा है अपितु इस देश के 80% लोगो के जेब पर मेट्रो का किराया भारी पड़ता है | इस परियोज़ना को चलाने वाली बहुरास्ट्रीये कंपनियों ने एकेडेमिकों का अपना संगठन खड़ा कर, उसे रिसर्च फण्ड देकर इस देश के नीति निर्धारको की सोच को अपने फायदे के हिसाब से बदलने की कोशिश कर रही है उसे किसी भी तरीके से जायज नहीं ठहराया जा सकता है |
दिल्ली मेट्रो की सफलता को दिखाकर इन कंपनियों ने देश के अन्य राज्यों में शहरी ट्रांसपोर्ट के लिए मेट्रो को एक विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही है | जयपुर, बंगलोरे में इसका नतीजा सामने हैं | इन शहर में मेट्रो अपना संचालन कास्ट निकालने की बात तो दूर, हर महीने सरकार के लिये करोड़ो का घाटा का जरिया बन गयी है और लोगो के लिए ये एक लोकल परिवहन के विकल्प के तौर पर नहीं उभर पाया है | फिर भी हम बिना सोचे समझे इसे पुरे देश में लागु करने की कोशिश कर रहें हैं वो आने वाले समय में राज्यों के अर्थवाव्यस्था पर भारी पड़ने वाला है | इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर अभी भारी मंदी का दौर गुजर रही है तो बैंको के लिये ये एक सुरक्षित निवेश का का जरीया बन उभरा है कयोंकि यहाँ सरकार घाटा सहने को तैयार बैठी है और हमारे नीति-निर्धारक धरल्ले से इन कंपनीयों और बैंको के जाल में फसते जा रहें हैं |
http://www.dnaindia.com/bangalore/interview-e-sreedharan-bmrcl-might-be-losing-rs50-lakh-a-day-1546133
http://timesofindia.indiatimes.com/city/jaipur/Jaipur-metro-ridership-survey-No-profits-before-2018-19/articleshow/46905984.cms
" बंगलोरे मेट्रो का सालाना घाटा 180 करोड़ और जयपुर मेट्रो का 50 करोड़ राज्य सरकार के लिए सरदर्द साबीत हो रहा है और बिहार को इससे भी जज्यादा घाटा होने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा रहा है | "
बिहार जैसे गरीब राज्य जब पटना शहर में हजारो करोड़ खर्च कर मेट्रो परियोज़ना लाने की बात करे तो हम समझ सकते हैं कि गरीब राज्य भी IMF और वर्ल्ड बैंक के चक्कर में कितना उलझ चुका है | जहाँ काम कुछ करोड़ के खर्च पर हो सकता है वहां 15 से 20 हजार करोड़ खर्च करना क्या साबित करता है, ये अब सोचने का समय आ गया है | हमारे नीति-निर्धारक, अप्सर, नेता लोग कॉन्ट्रैक्ट, सब कॉन्ट्रैक्ट और कमीशन के मकरजाल में इतना उलझ चुके हैं कि उनके लिए जनता का भलाई दोयम दर्जे का काम दिखने लगा है | जयपुर, बंगलोर और अन्य जगहों के मेट्रो की आर्थिक बदहाली को देखने के बाद यह सोचने का समय आ गया है कि हमारा फोकस किसी मॉडल को कॉपी करने का नहीं होना चाहिये अपितु हम अपने इलाके की जरुरत के हिसाब से नीतियाँ बनाये और उसे लागु करने की कोशिश करें |
पिछले पांच सालों से बिहार में मेट्रो का शिगुफा छोरा जा रहा है | बहुत सारे रिसर्च फर्म के शोध से यह पता चला है कि इस परियोज़ना की कुल लम्बाई 20 किलो मीटर के आसपास होगा और इसमें कम से कम 20 हज़ार कड़ोर रुपये खर्च होने का अनुमान है | उसी जगह पर अगर हम रेलवे ट्रैक की बात करें तो वो एक हज़ार से भी कम खर्च में एक साल के अन्दर बनकर तैयार हो जाने की बात है | बिहार के गरीब जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा बचेगा और सस्ता और सुलभ परिवहन विकल्प आम जनता को मिल सकेगा | लम्बे समय तक राज्य को कर्ज नहीं चुकाना परेगा, और इस पैसा का इस्तेमाल दुसरे विकास कार्य में किया जा सकेगा | रेलवे ट्रैक के बनने से रोड को जाम से मुक्ति मिलेगी और भविष्य में इस नेटवर्क को फ़ैलाने में ज्यादा खर्च होने की संभावना भी न के बराबर है कयोंकि पहले से पड़ी सरकारी जमीन के इस्तेमाल होने से जमीन अधिग्रहण के झंझट से बचा जा सकेगा |
अब समय आ गया है जब हम शहरी परिवहन व्यवस्था के मामले में थोडा अलग हट कर सोचें और आम जनता के भलाई वाले पॉलिसीज पर शोध करना शुरू करें ताकि भारत जैसे विकासशील अर्थवाव्यस्था को कर्ज के जाल में फसने से बचाये | जनता के पैसे का सही इस्तेमाल हो सके और गरीब राज्यों पर किसी मॉडल को थोपने के बजाय उन्हें वहां की जरुरत के हिसाब से जनता के लिए हितकारी मॉडल पर बात करने को प्रेरित करें |
http://research.omicsgroup.org/index.php/Patna_Metro
https://en.wikipedia.org/wiki/Patna_Metro
http://rajasthanpatrika.patrika.com/story/rajasthan/economic-loss-is-increasing-of-jaipur-metro-1426283.html
http://www.firstpost.com/politics/home-and-finance-secretary-working-to-weaken-delhi-govt-aap-mla-alka-lamba-2572164.html