काफी दिनों बाद दिसम्बर की सुनहरी धुप में छत पर बैठने का मौका मिला | शनिवार का दिन होने के कारन छत पर कुछ चहल पहल था या यूँ कहें ठण्ड में मीठी धुप सेकने लोग आ गए थे | हमारी लम्बी-चौरी छत पर हमारा एक फिक्स जगह हुआ करता तो हम सीधा वहां जा कर बैठ गए और फिर हाथो में कागज कलम ले लिखने लगे |
माहौल में ठंडक, धुप में अनकही रोमांस तो छत गुलजार न हो तो ऐसा कैसे हो सकता | बगल के छत पर एक लड़की बाल सुखा रही है और उसकी भींगी बाल और चेहरे पर लटकते लट में उसकी खुबसूरत देखते ही बनती है | " चार-छे " महीने के बच्चे चटाई पर लेटे अपना करामात दिखा रहे हैं | धुप मानो उनके लिए एक नया अहसास ले आया है और उसका पूरा लुफ्त उठा रहे हैं | पुरा चटाई बच्चो के खिलोने से भरा परा हँसी ठिठोले में अपने को समेटे माहौल को खुशनुमा बना रहा है | कुछ हमारी उम्र की लड़कियों बिन ब्याही ही बच्चे के माँ को अपने बच्चे का ख्याल कैसे रखे पर लेक्चर दे रही हैं और मैं इधर उधर मुहं छुपा उनके गंभीर मुद्रा का अवलोकन में लगा हूँ |
कापी पेन से हट हमारी नजर भी इधर उधर भटक कभी कभी किसी से आखें मिला लिया करती है | चेहरे की मुस्कराहट अगले को कंन्फ्यूज कर देती और मुझे कुछ नया लिखने को कुछ पॉइंट मिल जाता | वह बगल की लड़की जिससे मैंने एक बार मैथिली में बात की वो भी देख मुस्करा रही है और मेरा कलम कभी धीमे कभी तेज अपने रफ्तारो को गिन रहा है | ममा बच्चे को अंग्रेजी का डोज बचपन से ही देने की कोशिश में लगी हुई है और हाँ यहाँ पापा का रोल भी बड़ा सुखदायी है | लीक से हट चटाई पर बैठ बच्चो के लालन पालन में नयी माँओं के साथ व्यस्त हैं | उनकी आपस की बातें हमारे लिए काफी रोमांचित करने वाला होता और मुझे भी उनके सपनो के दुनिया की में शामिल होने का दिल करता है | लेकिन डरता कहीं उन्हें ये न लगे की मैं "??" और यही सोच अपनी दुरी कायम रहती | अपनी इक्छा और अकांछा पर काबु कर अपनी संवेदनायों को पेपर पर उकेरने की कोशिश में लगा रहता |
सूरज की चमकीली किरणों में बच्चे दूध का डब्बा मुहं में लगाये नयी दुनिया में ताक-झांक करने में व्यस्त हैं और छत मानो किसी पार्क के पिकनिक स्थल का झलक दे रही है | दुनिया की हजार राजनीती और पढाई लिखाई से दूर हम यहाँ थोड़ा सा मन बहलाने आ जाया करते | थोड़ी सी सम्बेदनायें, थोड़ा रोमांच और कुछ नया सुनने को मिल जाया करता | जीवन के कुछ अनोखे रूप दीखते, कुछ अनछुये पहलु समझता, कुछ गूढ़ रहस्यों को जानने की कोशिश में आखों को इधर उधर भटकाता, कुछ देर इन्हीं में से किसी से बातचीत कर लेता और कुछ दुरी भी जान बुझ कर या यूँ कहें किसी अनजाने डर से बना कर रखता | फिर एकाएक याद आता अपने किसी मीटिंग का और औरों के भातीं इस अनजाने शहर में भागने लगता |