ना जाने क्यों हर जगह तू ही महसूस होती है मुझे,
जिधर भी नज़र जाती है तेरी ही सूरत नजर आती है,
यूँ तो तुझे देखा था पहली बार वसंत की धुप में तुझे,
स्वेत परी सी सादगी की मूरत जैसी दिख गयी थी मुझे,
देखा हमने ख्वाब संग तेरे जिंदगी बिताने की चाहत थी तुझपे सारी खुशियाँ लुटाने की,
पर तेरे खुदा ने मुझसे मेरा जहाँ छीन लिया,
मिलाकर तुझसे फिर मुझे तक़दीर का फ़क़ीर कर दिया,
यूँ तो पास मेरे सबकुछ है मगर हर ख़ुशी जितेन्द्र की अधूरी है बिना तुम्हारे।
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- JITENDRA SINGH