हर जगह चंडीगढ़ में घुमने पर यह पता चला कि राशन में कैश ट्रान्सफर से वो लोग काफी दुखी हैं जिन्हें राशन की सख्त जरुरत है | शहरी गरीब वर्ग के महिलाओं का यह कहना है कि जब से पैसा अकाउंट पर आने लगा है तब से घर में आनाज की कमी हो गयी है | एक तरह से महिलाओं का मानसिक टेंशन बढ़ा है क्योंकि अब हमेशा घर में आनाज की कमी रहती है | बैंक अकाउंट पर जो पैसे आता है वो अकाउंट पर महीनों पड़ा रहता है |
महिलाओं का कहना था कि जब राशन डीलर से मिलता था तो कम से कम महीनो भर घर में चावल और आटा रहता था | रोज रोज का टेंशन तो नहीं रहता था कि घर में आटा, चावल है कि नहीं | हमारा पैसा दाल, तेल, सब्जी, दूध खरीदने में लगता था और हम अच्छा खाना खाते थे लेकिन अब रोज हमें पहले आटा और चावल खरीदना पड़ता है और फिर बचे हुए पैसा से हम कुछ खरीद पाते हैं |
हमारा तर्क यहाँ ये है कि क्या हमारा जो आज तक पालिसी चल रहा था कि हिंदुस्तान को कुपोषण से मुक्त करना है क्या हम उससे भटक तो नहीं रहे ? हमने आज तक इस देश को कुपोषण से मुक्त करने की हो पहल की थी क्या वो गलत था और उस पालिसी से देश को जो फायदा मिला क्या उसने हमारे विकास के दर को बढ़ाने का काम नहीं किया ?
हम सब्सिडी का बोझ कम करने के चक्कर में इस देश के करोड़ो लोगो को फिर से भूख और कुपोषण के जाल में क्यों ढकेलना चाहते हैं ये हमारी समझ के बहार की चीज है |
अब प्रशन ये है कि इस कैश ट्रान्सफर स्कीम के जरिये हम जिस भरस्टाचार को मिटने की बात कर रहे हैं क्या वो मिटने वाला है | केंद्र सरकार इस स्कीम पर लगभग 50 हज़ार क रूपया खर्च कर रही है और यह पैसा लगभग 10 लाख राशन के दुकानदार के बीच बंट रहा है | लेकिन जब हम पुरे राशन बाजार को निजी हाथो में सौपं देंगें तो कुछ चुनिंदा लोग इस पुरे पैसा को आपस में बाटने की कोशिश करेंगे और फिर हम बजार के भरस्टाचार को पकड़ पाने में असफल रहेंगें | आये दिन आलु , प्याज , टमाटर के कीमत में जो उछाल आती है और हमारी सरकार कुछ नहीं कर पाती है ये बात किसी से छुपी है क्या और कहीं राशन का यही हाल तो नहीं हो जायेगा डर इस बात का है | क्या गरीब लोग फिर से भूख और कुपोषण के दुनिया में रहने को मजबूर नहीं हो जायेंगे |