आंगनबाड़ी हर गाँव क़स्बा मोहल्ला की एक पहचान है | छोटे छोटे बच्चो का समूह, खिचरी बनाती सहयोगिनी और नन्हे-मुन्ने के किलकारियों से गूंजता वह छोटा सा जगह आपको पुरे भारतबर्ष में हर जगह मिल जायेंगे | हर परिवार का एक नाता सा बन गया आज के दौर में आंगनबाड़ी से | बच्चो का टिकाकरण, पौष्टिक आहार, महिलाओं का ट्रेनिंग इत्यादि ने इसका जुराव जनमानस से कर दिया है | आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अब घर घर में जानी पहचानी नाम बन गयी हैं |
दूसरी तरफ जब हम आम जनमानस की नजरो से आंगनबाड़ी को देखने की कोशिश करते हैं तो पाते हैं कि गाँव समाज के लोगो के नजरो में आंगनबारी की उपयोगिता न के बराबर है | लोगो के राय ये उभर कर आती है कि सरकार के पैसे का दुरउपयोग आंगनबाड़ी कार्यकर्ता करती हैं और बच्चो के खिचड़ी के पैसे का गबन होता है | खिचड़ी या पौष्टिक आहार के नाम पर बहुत ही निम्न क्वालिटी का आहार दिया जाता है तथा आंगनबाड़ी की कार्यकर्ता सही से काम नहीं करती हैं |
इसी बात को केंद्र में रख कर वर्तमान सरकार ने आंगनबारी को बड़े बिज़नेस घराने को सौपने का प्लान बनाया हैं | इस स्कीम के माध्यम से हजारो करोड़ो का खर्च सरकार के द्वारा किया जाता है तो बहुत सारी कंपनियों को ये एक मार्केट के रूप में दिखाई दे रहा है | विटामिन, मिनरल, माइक्रो न्युट्रीन्ट और बेहतर हाईजीन के नाम पर एक बड़ी साजीश रची जा रही है ताकि बर्तमान में जो विकेंद्रीकरण की निति आंगनबाड़ी के लिए है उसे खत्म कर कंपनीयों के जरिये केंद्रीयेकृत किया जाये और पुरे तंत्र को बहुरास्ट्रीये कंपनियों के हवाले कर दिया जाये |
बात 26 लाख आंगनबारी कार्यकरताओं का ही नहीं है | बात इनके द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था में जो योगदान दिया जा रहा है उसका भी है, तथा प्रत्येक महीने लाखो रुपया केंद्र से एक पंचायत में आने के रास्ते को बंद करने का भी है | पका हुआ गर्म भोजन जिसमें उस खास इलाके के स्वाद को धयान में रख बनाया जाता है, और लोगो के साहूलियत के हिसाब से इसमें बदलाव भी किया जा सकता है उसको पूरी तरीके से एक कृतिम स्वाद में बदल दिए जाने का भी डर है | और जहाँ तक बड़ी कंपनियों की बात है तो उन्हें किसी राज्य की राजधानी के अलाबे कहीं और जाने की आवयशकता ही नहीं है | और फिर हम कल्पना कर सकते हैं की इस कॉन्ट्रैक्ट-सबकॉन्ट्रैक्ट के युग में किसका फायदा होने वाला हैं |
इसमें कोई दो राय नहीं की आंगनबाड़ी में पुरे देश में व्यापक पैमाने पर धांधली हो रही है | ऊपर से नीचे तक लूट का तंत्र बना हुआ हैं | सरकारी अप्सर, नेता, दलाल और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सब इस लूट में शामिल हैं लेकिन जरा सोचिये !!!
!!!" थोडा हट कर "!!!
26 लाख आंगनबाड़ी कर्मचारी और दो लाख सरकारी कर्मचारीयों की फौज पुरे देश में इस लूट की हिस्सेदार बन रही है और उसी लूट को हम बहुरास्ट्रीये कंपनीयों को सौपं कुछ चुनिंदा लोगो के बीच सीमित करना चाह रहे हैं | लूट दोनों जगहों पर हैं लेकिन समाजबादी माडल में यह उपर से नीचे तक बंटता हैं परन्तु बाजारवादी मॉडल में यह कुछ चुनिंदा लोगो के पास जमा हो जायेगा और पूंजी का केंद्रीयेकरन के करण लूट के एक नए संसार का आगाज होता है जिसमें 95% आबादी का अलगाव हो जाता हैं |
हमारा ये आर्गुमेंट है कि आंगनबारी के मॉडल को अच्छी मोनिटरिंग के जरिये बेहतर ढंग से संचालित किया जाये ताकि जो 10 करोड़ बच्चे, गर्भवती और धात्री माता को फायदा हो रहा है उन्हें उनका उचित हक मिले और जिस नए लूट के तंत्र को हमारे देश पर थोपने की कोशिश हो रही है उसका पुरजोर तरीके से विरोध हो |