क्या हुआ | हजारो पुलिस की दिवार बना दिल्ली शहर में रेलवे के द्वारा झुग्गी पर बुलडोज़र चलाया गया | 1200 झुग्गियों को हाड़ कपां देने वाली ठण्ड में उजाड़ दिया गया | गरीब लोग रोड पर आ गए ठण्ड में रोते बिलखते, अपने आशियाने को उजड़ते हुए देखते, अपनी किस्मत को कोसते हुए |
और तुरंत सरकार हरकत में आ गयी | मुख्यमंत्री रात बारह बजे शकूर बस्ती पहुच जाते हैं और अपनी देख रेख में गरीबो के लिए सारी व्यवस्था करवाते हैं | जो भी जरुरी मदद हो सके उसे पहुचाया जाता हैं और कर्तव्य में लापरवाही बरतने के आरोप में दो SDM को निलंबित कर दिया जाता हैं | पूरी सरकारी अमला गरीबो के साथ खड़ी दिखाई पड़ती हैं |
आम तौर पर ऐसे वाकये में क्या होता है हम इस पर जरा गौर फरमा लें | झुग्गी उजड़ने पर सरकार सोइ रहती है, विपक्ष फायदे नुकसान देख कर बात करता और हम सामाजिक कार्यकर्ता अपना फर्ज निभाते थे | पुलिस की बर्बरता हम पर लाठियों के रूप में बरसती, हम पर FIR होता, हमें जेल में डाला जाता, और बहुत ज्यादा हल्ला होने पर सरकार कुछ फौरी राहत की घोषणा करती | झुग्गियां उजाड़ दी जाती, लोग होमलेस हो जाते और हमारा इन सब पे जाएदा जोर नहीं चल पाता | सरकारी और विपक्षी ठेकेदार लोग मिल कर जमीन बाट लेते, पैसा का नंगा नांच करते और उलटे पुलिस की मदद से गरीबो पर जुल्म किया जाता | और इन गरीबो के साथ हम जैसे कुछ सामाजिक सरोकार वाले लोग ही खड़े नजर आते |
लेकिन इस बार अभूतपूर्व बदलाव देखने लो मिला | न हम सामाजिक कार्यकर्ता की मांग रही, न हमारी जरुरत, और हमारा काम न के बराबर पड़ा | सरकार कहें या सत्ता ने हर वह काम किया जिसके के लिए हम हमेशा संघर्ष करते रहें | हमारा इशारा इसी बदलाव के तरफ है | अगर सत्ता हमारे हाथो में या हमारे पकड़ में होगा तो हम बहुत कम मेहनत से अपना काम इस देश के दबे कुचलो के लिए कर सकते हैं | और यह बात हम सामाजिक कार्यकर्ता को समझना पड़ेगा |