जी हाँ आज फिर मुझे भी शौक होता है कि मैं भी गावं के उसी पोखर पर जा कर छठ के लिए घाट बनाता | कुदाल उठा कर घाट बनाते हुए अपने बचपन को याद करता और फिर पोखर में धमाल मचाता | जी हाँ उस दिन जो घर से आजादी मिलती उसका पूरा फायदा उठाता |
केला का थम्ब काट कर लाता, पूरे घाट को सजाता और जम कर तैराकी करता पोखर में, कुल मिलाकर मै अपने बचपन को फिर से जीना चाहता हूँ | आज भी मुझे याद है की क्या मजाल है कोइ उस दिन टोक-टाक करे, क्योंकि वो आजादी का दिन होता था हम लोगो के लिये | फिर अपने घाट को दुसरे के घाट से सुंदर बनाने का यत्न करते-करते थक कर चूर हो जाते और घर को लौट जाते | आज भी उन दिनों कि याद मेरे चेहरे पर एक अभूतपूर्व चमक बिखेर देती है |
उन नए कपड़ो का ख़रीदा जाना और मेरा उनको लेकर घर के हर एक सदस्य को दिखाना, बार – बार उन कपड़ो को अपने शरीर के साथ नाप मिलाना | फटाका फोड़ना और न जाने क्या क्या करते थे उन दिनों | भोरे भोरे उठ कर छठ के घाट पर पहुँचते थे | ठंडा क्या होता है पता भी नहीं चलता था | बस बीती हुई बात लगती है हर वो पल | काश ये पल हमरी जवानी में कोई भी फिर से लेकर आ जाये, हाँ एक बार फिर से, दिल से यही पुकार निकलती है |