ग्रैंड कैनियन से लौट कर सबने मुझे बहुत-बहुत धन्यवाद दिया कि अगर ग्रैंड कैनियन नहीं देखा होता तो अमेरिका यात्रा अधूरी ही रह जाती. रात को वो ही पहले दिन वाला स्ट्रिप पर घूमने का प्रोग्राम हुया, खाया पिया और होटल आ गए. आज मेरा होटल के रूम में भी सिगरेट पीने का मूड था, लेकिन हमारा रूम नॉन-स्मोकिंग था. मैंने कुर्सी पर चढ़ के स्मोक
ग्रैंड कैनियन के पास शूटिंग करते हुए
डिटेक्टर को थोडा दबा कर बिजली के बल्ब की तरह एंटी-क्लोकवाइज घुमाया और डिटेक्टर मेरे हाथ में था. विद्युत् अभियंता (इलेक्ट्रिकल इंजिनियर) होने का इतना फायदा तो होना ही चाहिए. अब वो कितने भी हाई टेक हों हम भी पक्के भारतीय थे और वो भी उत्तर प्रदेश के, जो कि सिर्फ भारत नहीं बल्कि महाभारत है.
अगली सुबह सभी ग्रुप अलग-अलग हो चुके थे. हमने एक मॉल में थोड़ी बहुत शोपिंग की और अपराहन में वापस सेन फ्रांसिस्को की फ्लाइट ली. रात एक दूसरे होटल में बिताई जो कि पहले वाले से थोडा सस्ता था. 11 फरवरी को सुबह 0745 पर हमारी अटलान्टा की फ्लाइट थी जो कि सवा दो घंटे में अटलान्टा पहुंची. वहां से चार घंटे बाद एम्स्टर्डम की फ्लाइट थी. इस फ्लाइट को एम्स्टर्डम पहुँचने में नौ घंटे लगे. यहाँ से दो घंटे बाद मुंबई की फ्लाइट मिली और किसी तरह लगभग नौ घंटे (कुल 27-28) घंटे की यात्रा के बाद 12 फरवरी को रात साढ़े ग्यारह बजे हम मुंबई आ गये. भले ही मुंबई में हमारा घर नहीं था और हम ऑफिस के गेस्ट हाउस में ही रुके पर अपनी धरती की फीलिंग आ रही थी. अब हम अपने देश में थे और सच में ऐसा लग रहा था कि “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”.
अब मैं जो आपको बताने जा रहा हूँ वो मेरी अमेरिका यात्रा का निचोड़ है:
1. वायुयान की मितव्ययी श्रेणी (इकोनोमी क्लास) में 4-5 घंटे से ज्यादा समय की यात्रा करना बड़ा ही कष्टदायी होता है. या तो आपके पास इतने पैसे हो की आप व्यवसायिक श्रेणी (बिज़नेस क्लास) में जा सकें या फिर आप खंडित यात्रा (ब्रेक जर्नी) करें और हर 8-9 घंटे के बाद ढंग से सो कर आराम करके आगे की यात्रा पुन: शुरू करें.
2. यदि आप कार्यालय के काम से विदेश जा रहें हैं तो जान लें कि कार्यालय द्वारा दिए गए पैसो से आप का गुजारा नहीं हो पायेगा अत: कुछ अतिरिक्त धनराशि का प्रबंध करके अवश्य जाए.
3. जितना हो सके सूखा खाना या रेडीमेड सब्जियां ले जाये, ये निसंदेह आपके काम आयेंगी. शाकाहारी लोगो के लिए ये सिर्फ फायदेमंद ही नहीं अपितु आवश्यक है.
4. फ़ोन या लैपटॉप के चार्जर के साथ इंडियन टू यूरोपियन कन्वर्टर ले जाना ना भूले क्योंकि आपका चार्जर सीधे-सीधे वहां के पॉवर सॉकेट में नहीं लगेगा.
5. बाहर विशेष रूप से यूरोपियन देश में आपकी पहचान एशियन या भारतीय की है ये ऐसा ही है जैसे मुंबई में यूपी या बिहार वाले, बाकी आप खुद समझदार हैं.
6. देश से बाहर आपका सिर्फ एक ही मित्र होता है और वो है पैसा. किसी से भी किसी सहयोग की अपेक्षा ना करें अन्यथा पीड़ा होगी.
7. पाश्चात्य जगत अत्यंत भौतिकवादी है और भावनाओं के लिए स्थान कुछ कम ही है. इसे ही साभ्रान्त भाषा में आप कह सकते हैं they are very professional and not emotional fools like us. इसका जीवंत उदहारण हमने एक मॉल में देखा, जहाँ एक महिला ने बेबी वॉकर में अपने एक-डेढ़ साल के बच्चे के साथ ही एक पानी की बोतल और चिप्स का पैकेट भी वॉकर में बांधा हुआ था. वो बच्चा जब मन करता था रो लेता था और फिर खुद ही पैकेट में से चिप्स या बोतल से पानी पी लेता था. उसके माँ ने उसे इसी आयु में आत्म-निर्भर बना दिया था. हमारे यहाँ इससे भी कई बड़े बच्चो के पीछे खाना खिलाने के लिए भागती हुयी मांये तो आपने कभी ना कभी देखीं ही होंगी.
8. उनकी व्यावसायिकता (professionalism) का एक और उदाहरण आपको दे दूं. हमारे प्रशिक्षण कार्यक्रम में एक महिला लास वेगास की ही स्थानीय निवासी थी और लास वेगास एअरपोर्ट पर ही पोस्टेड थी. जब हमने उसके कोई अच्छा होटल सजेस्ट करने को कहा तो उसने एक पंक्ति के उत्तर में अपना पल्ला झाड लिया और हमें बता दिया की सारे अच्छे होटल स्ट्रिप पर ही हैं आप वही पर कोई ढूंढ लेना. जब हमने एअरपोर्ट देखने की इच्छा जाहिर कि तब भी उसने बताया कि उसका मिलना तो बहुत मुश्किल है उसकी ड्यूटी शिफ्ट में होती है. अब जरा सोच कर देखिये कि अगर हम से कोई अमेरिकन व्यक्ति होटल सजेस्ट करने को कहता तो हम कहीं से ना कहीं से उसके मदद जरूर करते. भले ही हमें अपने चाचा के साले की बुआ के मामा की लडकी के ससुराल वालो का भी लिंक ढूंढ के उसकी मदद करनी पड़ती.
9. अपने यहाँ के भाई-चारे का एक उदाहरण भी इसी यात्रा में मुझे मिला. एम्स्टर्डम में हमें एक गुजराती दम्पति मिले जो कि किसी और जगह से आये थे और इन्हें भी हमारे वाली फ्लाइट में मुंबई जाना था. इनका बैगेज कहीं खो गया था और वो इंग्लिश अच्छे से ना जान पाने के कारण काफी परेशान थे. मैंने इनकी थोड़ी मदद की और इनका बैगेज मिल गया. ये लोग सूरत के पास के वलसाड के थे. इन्होने मेरा बहुत धन्यवाद किया और मेरा नम्बर लिया. अमेरिका यात्रा के दो-तीन महीने बाद मई या जून में इनका फोन आया और इन्होने मेरा पता माँगा. मैंने दे दिया. अगले ही दिन एक व्यक्ति आम की चार पेटियां लेकर मेरे दरवाजे पर खड़ा था और इनमे एक पूरी तरह पकी हुयी खाने के लिए तैयार थी और बाकी एक–एक सप्ताह के अंतराल पर पकने को तैयार थी.
10. मुझे वहां के सारे प्रतिभागी (पार्टिसिपेंट) औसत बुद्धि वाले लगे. कोई भी ऐसा नहीं था जो कि हम भारतीयों से बेहतर हो. प्रशिक्षण के दौरान एक-दो लोगो की गलतियों को तो हम भारतीयों ने सार्वजानिक रूप से रेखांकित भी किया. इजराईल वाला प्रतिभागी (सांड भैया) तो पढ़ने नहीं बल्कि प्रशिक्षक को पढाने आया था. प्रशिक्षक की बात ख़त्म होने पर वो हर बात पर अपनी विशेषज्ञ राय (एक्सपर्ट ओपिनियन) देता था और प्रशिक्षक महोदय की भी हिम्मत नहीं थी कि वो उसे रोक या टोक सकें. आखिर वो ईजराईल से जो था.
11. अगर आपका कोई परिचित वहां पर हो तब बिना बुलाये या सिर्फ औपचारिक आमंत्रण पर उसके घर कतई ना जाए. अमेरिका यात्रा से कुछ दिन पहले मुझे अहमदाबाद से सूरत की ट्रेन यात्रा में एक आंटी जी मिली. इतने लम्बे सफ़र के दौरान उनसे बात हुयी. उन्होंने बताया कि उनके सारे बच्चे अमेरिका मैं हैं और वो अक्सर अमेरिका जाती रहती हैं. उन्होंने मुझे अमेरिका के बारे में बहुत सारे टिप्स दिए. मैंने उन्हें बताया कि मेरा एक दोस्त भी वहां पर है और मैं उसके घर जाने वाला हूँ. उन्होंने मुझे उसके घर ना जाने की सख्त हिदायत दी और बताया कि वहां किसी के पास किसी के लिए टाइम नहीं है और सबसे ज्यादा नाखुश तो दोस्त की बीवी होगी जिसे खाना बनाना पड़ेगा. उन्होंने मुझसे कहा कि यदि तुम अपनी दोस्ती बरक़रार रखना चाहते हो तो उसके घर मत जाना वरना तुम सदैव इस बात के लिए पछताओगे. आप सिर्फ तब ही किसी के घर जाएँ जब आपके सम्बन्ध उससे बहुत ही घनिष्ठ हों.
12. वहां भी भ्रष्टाचार है और बेईमानी होती है. हमने अपने होटल के मैनेजर से वास्तविक से ज्यादा धनराशि का बिल बनाने का निवेदन किया तो वो सहर्ष तैयार हो गया. ये अलग बात है कि हमारी हिम्मत नहीं हुयी और हमने ऐसा नहीं किया.
13. आप कही और घूमने जाए तो भी ठीक है लेकिन लास वेगास, शिव शिव शिव शिव..... लास वेगास एक छलावा है, एक भ्रम है, एक जाल है, पूरी दुनिया के चरम अमीरों की जेब से पैसा निकालने का या कहिये लूटने का. क्या आपको लगता है कि आप किसी कैशिनो से पैसा जीत कर आ सकते हैं? अगर हाँ तो ठीक है फिर जाईये और लुट कर आईये क्योंकि आपके पास जरूरत से ज्यादा है.
14. हमारे साथ के एक काफी वरिष्ठ साथी ने ग्रैंड कैनियन देख कर कहा कि ठीक है यार, अच्छा है लेकिन ऐसा कुछ नहीं है कि आदमी कहे वॉव ! उन्होंने विश्व में काफी स्थान घूमे हुए थे और उनका कहना था कि इससे कहीं बेहतर जगहे तो अपने हिन्दुस्तान में हैं, विशेष रूप से उत्तर-पूर्व में. दरअसल ये अमेरिका की मार्केटिंग है जिसने डिस्कवरी और नेटजिओ आदि चैनल्स पर दिखा-दिखा कर ग्रैंड कैनियन या लासवेगास को महान बना दिया है. ये एक सोची समझी रणनीति है, विश्व के पर्यटकों को लुभाने और पैसा कमाने की.
15. अगर आप कार्यालय के काम से विदेश जा रहें हैं तो ठीक है लेकिन अगर आप सिर्फ घूमने के उद्देश्य से विदेश जा रहें है तो अपने आप से पूछे कि क्या आपने अपना देश पूरा देख लिया है जो कि आप विदेश जा रहें है. कश्मीर की वादियाँ, लद्दाख के पहाड़, राजस्थान के महल, केरल के हाउसबोट, नार्थ-ईस्ट की खूबसूरती, गोवा के समुन्द्र तट...... हिन्दुस्तान इतना खूबसूरत है और इसे देखने के लिए एक जन्म भी कम है. शायद ही विश्व के किसी देश में इतनी विविधता हो.
तो कुल मिला कर बात इतनी सी है कि “जान बची और लाखो पाये, लौट के बुद्धू घर को आये”
कभी मूड बना तो चीन यात्रा के बारे में भी लिखूंगा, तब तक के लिए राम राम