शहर के वो सारे माँल जिसकी आङ मेँ ना जाने कितने वादे किए थे हमने , सब अधूरे से लगने लगे है मेरी तरह ....हाँ ! मेरी तरह
रेलिँग पर वो तुम्हारी कोहनी की रगङ आज भी जिँदा है , उसको खरोंच कर के उसके बुरादों में तुम्हारा अक्स ढूंढने की कोशिश कर करता हूँ , मगर पता नहीं क्यों तुमको खोज नहीं पाता, कहीं तुम्हारी यादें भी काले धन जैसी तो नहीं हो गयी |
सोँचता हूँ उन बीते पलोँ की यादोँ को किसी को गोद दे दूँ अब , कायदे से मुझसे सँभल नहीं रही है ॥
दिक्कत ये है कि यादेँ तुम्हारी बहुत रुलाती है , इतना की समुँदर का पानी खतम हो चुका है अब बस लाल पानी अंदर शेष है , वो भी बोझ से पीली पङती जा रही है और एक दिन बोझ इतना बोझिल हो जायेगा की वो फिर सफ़ेद दिखने लगेगा .....बिलकुल सफ़ेद ...राख की तरह
सुनो !! फन सिनेमा की टिकटेँ महँगी हो चुकी है , वेब अभी भी उतने पर है जितने पर तुमने छोङा था ,दो टिकटे ले चुका हूँ ,तुम्हारा इँतजार रहेगा , आज भी अपनी यादोँ को मत भेज देना ॥ मेरा तो पता नहीँ मगर सिनेमा हाँल के उस कोने को मैँ आज नहीं समझा पाउँगा |
तुमको याद है न वो कोना ? पता है , अब न उन दीवारों को लाल कालीन से ढक दिया गया है , पर मैंने देखा है उसके अंदर के रिसाव को , अरसा हो गया उसने भी कोई कहानी सुनी नहीं है ,तो वो भी थोड़ा नम सा हो गया है |
सिनेमा के शोर में तुम्हारी फुसफुसाहट समझने का अलग ही आनंद था , इसी बहाने तुम्हारी सांसें मेरे कानो से बात तो कर लेते थे , अब वो भी नहीं |
मैंने पूरे हफ्ते के लिए H12 H13 बुक कर लिया है , टाइमिंग का तो तुमको पता ही होगा |
इंतज़ार रहेगा