जिसने किया था जम कर शोषण, दिया न भर पेट भोजन |
गोल-गोल किये थे वादे, चिकने-चुपड़े थे जिसके आश्वासन ||
जब सत्ता थी इनके हाथों में, चिपका रहा जो अपने सिंहासन |
वो नेता ही था, जो पांच बर्ष तक लौट के फिर आया नहीं था ||
अपने को, जनता का मालिक-मुक्तार समझता था |
अपने को, जनता का पालनहार समझता था ||
अपने को, ईश्वर का अवतार समझता था |
वो नेता ही था, जो अपने को सरकार समझता था ||
दबी-कुचली जनता बन, जी लिए बहुत तुम |
तुमको तुम्हारी पहचान कराने आया हूँ ||
भूल गए, स्वराज मिली थी वर्षों पहले तुमको |
उपयोग करो स्वाधिकार, याद दिलाने आया हूँ ||
जनता का,जनता द्वारा,जनता के लिए ही है सर्वस्व,जानो तुम |
मैं लोकतंत्र का चारण हूँ, इसकी महिमा तुमको बतलाने आया हूँ ||
सरकार बदलो, व्यवस्था बदलो, अब “सुराज्य” तुम्हें ही लाना है |
न्योछावर किया हो अपना जीवन तुम पर, उसको ही अपनाना है ||
- चन्द्रशेखर प्रसाद