लौट के बुद्धू घर को आये- ग्रैंड कैनियन
September 20, 2015 at 2:07pm
अगले दिन सुबह सब लोग इक्कट्ठे तो टाइम पर हो गए किन्तु यहाँ तो कहानी ही कुछ और थी. कोई भी ग्रैंड कैनियन जाने को तैयार नहीं था. उनका कहना था कि 200 किलोमीटर जाना और वापस आना एक बेवकूफी है. इससे अच्छा तो हम बाजार चले कुछ शौपिंग करें और दोपहर का खाना खा कर वापस आ जाए ताकि तीन-चार घंटे सो कर फिर से रात के लिए तैयार हो सके. दरअसल इन लोगो ने पूरी रात द्युतक्रीडा (जुआ), मदिरापान और नृत्यालय में बिताई थी और वो बुरी तरह थके हुए थे. मैं किसी भी कीमत पर मानने को तैयार नहीं था क्योंकि मेरी लास वेगास आने की शर्त ही ये थी कि हम ग्रैंड कैनियन जायेंगे. मैं अकेला जाने के पक्ष में था, तीन लोग निष्पक्ष और पांच मेरे विरोध में. मैंने घोषणा कर दी कि अगर कोई नहीं जाना चाहता तो ना जाए, मुझे अगर अकेले भी जाना पड़ा तो मैं जाऊँगा. अंत में काफी जद्दोजहद के बाद सभी को मेरी जिद के आगे झुकना पड़ा और हम चल पड़े ग्रैंड कैनियन देखने.
ये वो ही सड़क थी जिससे हम कल हूवर डैम गए थे. लेकिन इस बार डैम की तरफ बायीं ओर नीचे उतरने की बजाय हमने हुवर डैम बाईपास जिसका जिक्र मैंने कल किया था से कोलराडो नदी पार की और दक्षिण-पूर्व दिशा में चलते रहे. लगभग डेढ़-दो घंटा चलने के बाद हमने मुख्य राजमार्ग यू एस 93 को छोड़ दिया और बायीं ओर मुड गए. हमें रास्ता बताने में डैश बोर्ड पर लगा हुया जीपीएस रिसीवर हमारी मदद कर रहा था. गाडी हमारे टीम सदस्य के यूएस वाले भाई चला रहे थे. रास्ता एक दम सुनसान था और ट्रैफिक नहीं के बराबर था. सड़क की चौडाई भले ही कम थी लेकिन हालत एक दम दुरुस्त थी. चारो ओर दूर दूर तक रेगिस्तान फैला हुया था. थोडा और आगे चलने पर डोलेन स्प्रिंग नामक जगह पर हमने एक रेस्तौरेंट में नाश्ता किया. ये भी बुफे था और प्रति व्यक्ति 9 डॉलर था. धीरे धीरे मिट्टी का रंग बदलता जा रहा था और ये कुछ कुछ लाल रंग की हो गयी थी. वनस्पति बहुत कम थी और जो थी वो बिलकुल रेगिस्तानी थी, मतलब सिर्फ कांटो वाले अजीब-अजीब से पेड़ थे. कई जगहों पर सड़क से कुछ दूर मिट्टी के ढलान में तार की जालियां फ़ैली हुयी थे शायद के भूमि का कटाव रोकने के लिए थी. धीरे धीरे- रेगिस्तान का स्थान पत्थर की चट्टानों ने ले लिया और घुमावदार हो गयी थे. अब सड़क की हालत उतनी अच्छी नहीं थे. कुल मिला कर लगभग तीन-चार घंटे की यात्रा के बाद हम एक खुली हुयी जगह में पहुँच गए. ये ही ग्रैंड कैनियन का इलाका था.
कैनियन का अर्थ हिंदी में घाटी होता है और वो भी ऐसी घाटी जो कि किसी नदी के कटाव से बनी हो. ग्रैंड कैनियन 446 किलोमीटर लम्बा है और इसकी चौडाई 29 किलोमीटर है. इसके तलहटी में कोलराडो नदी बहती है और इसकी अधिकतम गहराई दो किलोमीटर से थोड़ी सी कम है. ग्रैंड कैनियन को चार तरफ से देखा जा सकता है दक्षिणी रिम, उत्तरी रिम, पूर्वी ओर तथा पश्चिमी ओर. इसे पूरा देखना तो संभव नहीं था तो हम इसके पश्चिमी हिस्से में पहुंचे थे क्योंकि लास वेगास से ये ही सबसे पास था. यहाँ एक मुख्य स्वागत क्कार्यालय था जिसमे अलग अलग तरह के भ्रमण विकल्प उपलब्ध थे. सबसे मंहगा विकल्प छोटे हवाई जहाज या हेलीकाप्टर से ग्रैंड कैनियन के अन्दर घूमना था और सबसे सस्ता विकल्प स्काई वाक पर जाए बिना बस में घूमना था. हमने बीच का रास्ता अपनाया स्काई वाक के साथ बस में घूमने का टिकट लिया. इसमे दोपहर का भोजन भी शामिल था और तीन और पॉइंट थे जिसमे ईगल पॉइंट, गुआना पॉइंट और हुलापाई रांच थे. इसके कीमत 81 डॉलर थी.
हमें बस में बैठा कर सबसे पहले हुलापायी रांच ले जाया गया. रांच का अर्थ होता है पशुशाला अर्थात जहाँ गाय-भैंस रखे जाते हैं और हुलापायी यहाँ की स्थानीय जनजाति का नाम है. यहाँ अच्छा-खासा नाटक था. कुछ लोग काऊ-बॉय बन कर घोड़ो पर घूम रहे थे. कुछ लड़ने का नाटक कर रहे थे. बैठ कर फोटो खिचवाने के लिए कुछ घोड़े खड़े थे. एक जेल का सेट बनाया हुया था. एक ऊँचे चबूतरे पर फांसी देने का प्रबंध था. लकड़ी की घोड़ा गाड़ियां थी. एक रेस्तौरेंट भी था जो कि एक दम पुराने ज़माने के काऊ-बॉय स्टाइल का था. दीवारे लकड़ी की थी और उन पर हंटर और हैट टंगे हुए थे. एक दीवार में से निकली हुयी वृक्ष की शाखा पर एक नकली चीता बैठा हुया था. इसमे रेस्तौरेंट में एक व्यक्ति गिटार बजा कर गाना गा रहा था. इसमे आप चाहे तो खरीद कर कुछ खा सकते थे. हम यहाँ 30-35 मिनट रुके फोटो-वोटो लिए और फिर बस से आगे चल पड़े.
अगले दो पॉइंट; ईगल पॉइंट और गुआना पॉइंट के बारे में बताने को कोई खास बात नहीं है. इस दोनों जहग से ग्रैंड कैनियन ठीक से दिखाई देता था लेकिन ये खतरनाक भी था. अगर आप ज्यादा आगे चले गए और पैर फिसल गया तो आप दो किलोमीटर नीचे ग्रैंड कैनियन में गिर भी सकते थे. ये पूरा क्षेत्र बहुत ही उबड़-खाबड़ और असुरक्षित था. फोटोग्राफी के शौक़ीन लोग अलग-अलग स्तर का खतरा मोल लेकर फोटो ले रहे थे.
स्काई वाक की जगह पर अच्छी खासी ईमारत थी, रेस्तौरेंट था, छोटा सा बाजार था जहाँ कैप, टी शर्ट, बैग और अन्य सामग्री खरीदने के लिए उपलब्ध थी, ओपन थिएटर जैसी जगह थी. यहाँ एक हुलापायी जनजाति की नृतकी वहां के पारम्परिक संगीत पर नृत्य कर रही थी. हम में से कुछ लोगो ने उसके साथ नृत्य किया और फोटो खिचायें. स्काई वाक पर जाने के लिए हमें कुछ देर लाइन में लगना पड़ा. हमारा सारा सामान, कैमरा और फोन तक लॉकर में रखवा दिए गए. जैसे ही मैंने स्काई वाक में कदम रखा एक भय की लहर मेरे रीढ़ हड्डी में दौड़ गयी. मैंने पैर पीछे कर लिया और जो लोग स्काई वाक में मजे से घूम रहे थे उन्हें देखने लगा कि वो कैसे घूम रहे हैं. दरअसल स्काई वाक एक यू शेप की बालकनी है जो कि किनारे से 70 फीट आगे तक हवा में है. इस बालकनी की दीवारे और फर्श सब कुछ कांच का है. जब आप पहली बार इसमे जाते है और नीचे की ओर देखते है तो लगता है कि पैरो के नीचे कुछ है ही नहीं. यहाँ पर कैनियन की गहराई एक किलोमीटर से ज्यादा ही होगी. अब मैंने एक तरीका निकाला. एस बार मैं स्काई वाक पर तो गया लेकिन नीचे की ओर नहीं देखा. हल्का-हल्का डर तो लग रहा था लेकिन कुछ सुकून मिला. कुछ देर में थोडा एडजस्ट होने के बाद मैं नीचे भी देख पा रहा था. ग्रैंड कैनियन की दीवारों में पत्थरों की अलग-अलग परते अपने-अपने युग के कहानिया सुना रही थी. एक अध्ययन के अनुसार ग्रैंड कैनियन की आयु 15 मिलियन (150 लाख) वर्ष है जबकि कुछ विद्वान इसे 70 मिलियन वर्ष बताते है. वाकई अदभुत अनुभव था. यहाँ व्यावसायिक फोटो खीचने वाले मौजूद थे. एक पोस्ट कार्ड साइज़ फोटो का मूल्य था मात्र बीस डॉलर. लौटने पर हमें एक प्रमाणपत्र दिया गया जिसमे लिखा था कि फलां-फलां व्यक्ति ने फलां-फलां तारीख को ग्रैंड कैनियन का दौरा किया. ईमारत से बाहर आकर टिकट के साथ मिले लंच कूपन से खाना लेकर खाया. थोडा और फोटोबाजी की और चले पड़े वापस लास वेगास की ओर. राजकपूर की फिल्म ‘अराउंड दी वर्ल्ड’ के गाने की ये पंक्ति बार बार मेरे दिमाग में घूम रही थी; “जब ग्रैंड कैनियन देखा, याद आ गया वो अनदेखा”. सच में महान है वो सबसे बड़ा शिल्पकार; परम पिता परमात्मा, जय हो.