भोरे-भोरे वो उठ के चली चौर की ओर,
गोद में चार माह के बच्चे को सँभालते हुए,
हाँथ में हँसुआ लिए हुए,
कंधे पे कपडे का एक टुकरा डाले हुए.
खेत पे पहुँच के ठिठकती है,
कपडे को आरी पे बिछाती है,
बच्चे को उस पे सुलाती है,
उसे थोरा लार प्यार करती है.
बच्चे माँ को टुकुर-टुकुर देखता है,
माँ स्नेहमयी ममता बरसाती है,
तभी... उसके कानो में एक आवज गूंजती है,
बच्चे में लगी रहोगी या कुछ कम भी करोगी.
माँ बच्चे को छोर कटनी शुरू कर देती है,
आधा पाही ही लगा पायी होती है,
की बच्चे की रोने की आवाज आसमान को भी सुनाई देती है,
पर वो काम तल्लीनता में इस से बेखबर होती है.
बच्चे का रो-रो के बुरा हाल है,
माँ साल भर की खर्ची जुटाने के लिए परेशान है,
ज्यादा से ज्यादा कटनी करने का भुत सवार है,
जल्द से जल्द पाही पूरा होने का इंतजार है.
अमित सिंह