सूरत में जिस सोसाईटी में मैं रहता था यूं तो उसमे ठीकठाक चारदीवारी थी. आने जाने के लिए गेट थे जो कि रात को बंद हो जाते थे. गेट पर और तीनो टावर्स में गार्ड्स थे, जो कि चौबीस घंटे ड्यूटी पर रहते थे. इन सब के बावजूद भी मेरी बेटी ईशानी की दस दिन पहले खरीदी हुयी, एक दम नई-नकोर, साढ़े छ: हजार रूपये की सायकिल चोरी हो गई. एक दिन सुबह देखा कि सीढीयों के नीचे साईकिल नहीं है. सब जगह ढूँढा, सब बच्चो से पूछा, गार्ड्स से भी पूछा लेकिन नहीं कुछ पता नहीं चला. मैंने ऑफिस जाते-जाते घोषणा कर दी कि मैं पुलिस में शिकायत करने जा रहा हूँ और पुलिस अपने आप पता लगा लेगी कि साईकिल किसने चुराई है. मैं शाम को ऑफिस से वापस आया तो सभी गार्ड्स मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे और मिलकर मेरे घर आये. उन्होंने बड़ी ही दीनता से हाथ जोड़ कर कहा कि
“साहब हम में से किसी ने भी साईकिल नहीं चुराई है”
“तो तुम लोगो को किस बात की चिंता है? हो जाने दो पुलिस कंप्लेंट जब तुमने साईकिल नहीं चुराई है तो तुम क्यों डरते हो” मेरा जवाब था
“साहब साईकिल किसी ने भी चुराई हो लेकिन अगर पुलिस कंप्लेंट हुयी तो पुलिस सब से पहले हम सब पर ही शक करेगी और हमें मारेगी”
“तुम क्या चाहते हो कि मैं अपना साढ़े छ: हजार का नुकसान भूल जाऊं?”
“नहीं साहब हम चाहते है कि आपका भी नुकसान ना हो और हमें भी परेशानी ना हो”
“ऐसा कैसे हो सकता है?”
“हम सब लोग आपस में पैसा इकट्ठा करके आप के साढ़े छ: हजार के नुकसान की भरपाई कर देंगे और बदले में आप पुलिस कंप्लेंट मत करो”
उनके इस प्रस्ताव ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. मैं अपने साढ़े छ: हजार के लिए उन गरीबो की पिटाई करवाने जा रहा था. वो अपनी ५-६ हजार रूपये की पगार में से चंदा करके मेरा नुकसान भरेंगे सिर्फ अपनी रक्षा के लिए. क्या ऐसे पैसे मुझे कभी फलेंगे? क्या भगवान ऐसे अपराध के लिए मुझे कभी भी क्षमा करेंगे? मुझे अपने ऊपर काफी ग्लानि हुयी और मैंने उनसे कहा
“ठीक है तुम सब लोग जाओ मैं पुलिस कंप्लेंट नहीं करूंगा”
“थैंक यू साहब हम एक दो दिन में इकट्ठा करके आपके पैसे दे देंगे”
“नहीं मुझे तुम्हारे पैसे भी नहीं चाहिए”
वो सब खुशी खुशी चले गए.
आप कहेंगे मैंने बेवकूफी की लेकिन ज़रा सोचिये, हो सकता है उनमे से किसी एक ने या दो ने ही साईकिल चुराई हो लेकिन ये तो पक्का है कि वो सब उस में शामिल नहीं थे. अगर उन सब ने मिल कर ये काम किया होता तो साढ़े छ: हजार की साईकिल के लिए साढ़े छ: हजार रुपये भरना बेवकूफी का सौदा होता. अगर उनमे से एक भी निरपराध था तो मैं समझता हूँ कि उसकी रक्षा के लिए साढ़े छ: हजार रुपये का घाटा उठाना कोई घाटे का सौदा नहीं रहा.