".....लेकिन भाई दुनिया क्या कहेगी, हमारी दिल्ली तुम्हारा सूरत नहीं है"
"तो जीजी हम क्या दुनिया के लिए अपने बच्चो का भविष्य या कहिये पूरा जीवन बर्बाद हो जाने दें?"
"लेकिन भाई हमें रहना तो इसी समाज में है"
"ये समाज क्या आपके भूखे होने पर आपको रोटी देने आएगा? अगर नेहा की शादी के बाद उसके ससुराल वाले लोग अच्छे ना निकले और उसे परेशान करने लगे तो क्या ये समाज मदद के लिए आएगा?"
"अच्छा चल मैं तेरी बात मान भी लूं तो तेरे जीजाजी नहीं मानेंगे"
"क्यों जीजाजी आप इतने पढ़े लिखे होकर, देश की राजधानी के नागरिक हो कर भी इन्ही दकियानूसी बातो में यकीन करते हैं?"
"नहीं बबलू तू मुझे अच्छी तरह जानता है मेरे विचार ऐसे नहीं है हैं लेकिन पिताजी को समझाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है. वो तो कई बार नेहा से कह चुके हैं बेटा तूने कुछ गलत किया तो मैं मर जाऊँगा"
"जीजाजी आपको सुनके बुरा लगेगा, बात बहुत कड़वी सी है लेकिन आप ही बताओ कि आप के पिताजी की उम्र कितनी है?"
"होगी कोई ८०-८२ साल"
"आपको क्या लगता है वो और कितने साल जीने वाले हैं? २, ४, या ६? आप उनके ४-६ सालो के लिए नेहा की पूरी जिन्दगी दांव पर लगा देंगे?"
"भाई तेरी बात तो ठीक है, पर ये इतना आसान भी नहीं है. दरअसल लड़का किसी भी जाति या धर्म का होता तो इतनी समस्या नहीं होती लेकिन ब्राहमणों की लड़की की शादी शेड्यूल्ड कास्ट लड़के से......पूरे समाज में तहलका मच जायेगा. लोग ऐसे-ऐसे ताने मारेंगे कि क्या ब्राहमणों में लडको का अकाल पड गया था?"
"जीजाजी ये सब छोडो आप सिर्फ ये बताओ कि आप गौरव को कितने दिनों से जानते हो?"
"लगभग तीन चार साल से"
"आपको वो कैसा लगता है?"
"उससे अच्छा लड़का शायद ही हम अपनी नेहा के लिए ढूंढ पायें?"
"और अगर अरेंज मेरिज करने पर लड़का अच्छा ना निकला तो?"
"तो क्या भाई बस हमारी लडकी का भाग्य....."
"मतलब आप भाग्य के सहारे बेटी का भविष्य दांव पर लगाने को तैयार हो, लेकिन समाज के डर के मारे एक अच्छा-भला, जांचा-परखा लड़का ठुकरा दोगे? एक बार सोच के देखो अगर नेहा ने अपनी मर्जी से उससे शादी कर ली तो क्या इज्जत रह जायेगी?"
"नहीं हमें अपनी लड़की पर पूरा भरोसा है. वो कभी भी हमारी इच्छा के विरुद्ध नहीं जायेगी और कभी हमें नीचा नहीं दिखायेगी. अगर ऐसा होना होता, तो पिछले चार सालो में हो चुका होता."
"तब तो आपकी उसके प्रति जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है, क्योंकि जो बेटी अपने माँ-बाप की इज्जत का इतना ख्याल रखती है, क्या आपका फ़र्ज़ नहीं है कि आप भी उसकी खुशियों का ध्यान रखे?"
"हाँ भाई बात तो तेरी ठीक है. हम भी दिल्ली से सूरत तेरे से ये ही डिस्कस करने आये थे. चाहते तो हम भी यही है लेकिन...."
"लेकिन-वेकिन कुछ नहीं आप दिल्ली वापस जाने के बाद धीरे-धीरे अपने पिताजी को मानसिक रूप से तैयार करना शुरू करो. पिताजी नेहा की शादी सहमति से गौरव से कर देंगे तो ज्यादा अच्छा रहेगा अगर उन्होंने अपनी मर्जी से करली तो समाज में क्या इज्जत रहेगी. वैसे भी आपको इससे अच्छा लड़का नही मिलेगा. दोनों एक दूसरे को चार सालो से जानते हैं, साथ में काम करते हैं. फाईनेंसियली भी उन दोनों का भविष्य बहुत अच्छा रहेगा."
"ठीक है देखते हैं...."
"देखना-वेखना कुछ नहीं आप इस दिशा में ठोस काम करना शुरू करो. जीजाजी ये कितनी गलत बात है कि हम रोज टीवी और अखबार में देख कर विभिन्न मुद्दों पर गर्मा-गर्म बहस करतें हैं, समाज और दुनिया को बदलने की बात करते हैं लेकिन जब अपना कुछ करने का नम्बर आता है तो समाज और परम्पराओं की दुहाई देकर झट से अपने खोल में घुस जाते हैं. अगर हम लोग इस परिवर्तन की शुरुआत नहीं करेंगे तो कौन करेगा? सिर्फ गांधी जी की आत्मकथा पढ़ने से समाज नहीं बदलेगा, समाज बदलेगा जब हम उसपे अमल करेंगे. और कोई साथ दे या ना दे मैं इस निर्णय में पूरी तरह से आपके साथ हूँ और नेहा की शादी गौरव से ही होनी चाहिए"
"भाई, भले तू हमसे छोटा है पर तेरे से बात करके अच्छा लगता है. काफी कुछ बाते साफ़ हुयी और अब हमारा हौंसला भी काफी बढ़ गया है. ठीक है चल. बाकी बाते सुबह करेंगे आलरेडी रात के ढाई बज चुके हैं सुबह जागना भी है"
अगले दिन सुबह मेरी आँख मेरे मोबाइल की आवाज से खुली
"सर, मैं एअरपोर्ट मेनेजर बोल रहा हूँ"
"हाँ बुराजी बोलिए"
"सर, यहाँ एअरपोर्ट में पुलिस आयी हुयी है"
"पुलिस ! किस लिए?"
"सर, वो डूमस पीआई साहब इन्क्वायरी के लिए आये है, किसी ने आपके खिलाफ पुलिस में कम्प्लेंट की है"
"मेरे खिलाफ पुलिस कंप्लेंट ? किसने की ? और कम्प्लेंट क्या है ?"
"सर, फायर के एक स्टाफ ने की है, अट्रोसिटी एक्ट में"
"ये अट्रोसिटी एक्ट क्या है ?"
"सर, उसका कहना है कि वो शेड्यूल्ड कास्ट है और आपने उसे जाति सूचक गाली दी है......................
....................."