वो जो तुमने आखरी बार अपने आप को देखा था मेरे साथ उस आईने में , वो मैं सूटकेस से निकाल लाया हूँ, सोंचा नहीं था कभी खुद को देखने के लिए तुम्हारी आँखों के सिवा किसी और की जरुरत होगी , मगर अब जो तुम नहीं हो तो ये आईना ही तुम्हारी याद बनके मेरे साथ रहेगी
इसमें देखने का हक़ आज भी सिर्फ मेरा है , हमारा तो अब नहीं कह सकता ; क्यूंकि हमारे में जो हमारा था वो अब किसी और का हो चूका है , और जो तुम्हारा था वो तो तुम्हारा ही है आज भी , और जो मेरा था वो तो हमेशा से ही तुम्हारा था , थोड़ा कोम्प्लिकेटेड कर दिया न मैंने , मगर क्या करे मैंने तो सिर्फ लफ़्ज़ों को किया है , तुमने तो पूरी ज़िन्दगी ही कर दी
शिकायत कुछ ख़ास नहीं है तुमसे और शायद न कभी होगी , वैसे इश्क़ में जबरदस्ती अच्छी नहीं होती इसलिए करनी भी नहीं चाहिए , अपने मुल्क में जमुरियत है और हमारे इश्क़ में भी थी शायद , थी की नहीं ?
देखो ये सुनकर तुम्हारी यादें भी हसने लगी है जोर-जोर से ....इश्क़ अगर जमीन जैसा होता तो कब का तुमको अपना बना लिया होता और अब तो सरकार ने क़ानून भी बना दिया है , लेकिन मैं ऐसा नहीं करूँगा , मैं इंतज़ार करूँगा ; तुम्हारा नहीं , तुम्हारी यादों का , की कब वो अपना दम तोड़ दे और मैं उसको एक कागज़ में लपेट कर तुम्हारी बेवफाई की फ़िल्टर की साथ अपने जेहेन की अंदर खीच लूँ और फिर सफ़ेद धुएं के साथ इन खुली हवाओं में छोड़ दूँ हमेशा के लिए
तब शायद तुमको एहसास हो की किसी को अपना बना कर फिर अपने से जुदा कर देना कितना खटकता है l
तुम्हारी यादें रात को गस्त तेज कर देती है , आँखे बंद करके नीदं को धोखा देना पड़ता है ; पर आजकल वो भी समझ रहा है सबकुछ , उसने भी पलकों पे अपनी पहरेदारी बढ़ा दी है | हर जगह से रास्ता बंद है और जो रास्ता खुला है उसके लिए पहले मुस्लिम बनना पड़ेगा क्यूंकि मेरे धरम में जलाने का फैशन है , आदमीं चैन से सोना भी चाहे अपने कब्र में तो ये लोग सोने नहीं देते , बोलते है पहले मरो ....तो क्या साँसों का रुकना ही मौत है ?? और जो तुम देके गयी हो वो तो किसी नजरिये से ज़िन्दगी नहीं है |
किराये की कब्र ले ली है , जब पैसे आ जाएंगे तब मौत खरीद कर अंदर सो जाऊंगा ...
शायद तुम्हारा
धैर्यकांत मिश्रा