सुबह हुई थी , रात के सपने क्लाइमेक्स के इर्द गिर्द घूम फिर रही थी और अचानक नींद खुली | दरवाजे पे सुबह ने दस्तक दी , कुछ वक़्त के लिए उसको नज़रअंदाज़ किया तो , खिरड़कियों के छोटे से छेद झाँकने की कोशिश में लग गया | आखिर जब वो आँखों के पास पहुंचा तो नींद भाग खरी हुई और ऐसा लगा की फिर आज कोई कहानी अधूरी सी रह गयी |

आलस के मारे बिस्तर की सिलवटों से और लिपटने का मन कर रहा था , मानो उन सिलवटों में किसकी रूह छुपी थी , शायद पुरानी यादों की नजदीकिओं की बू आज भी किसी सिलवट में छुपी पड़ी थी , थकान का झूठा बहाना कर के कुछ देर युही खुद को धोखा देते रहे , और आखिर जब अलार्म ने शोर मचाना शुरू किया तो सोंचा चलो अब उठ जाऊं |

शायद सुबह के दस बजे होंगे , एक और दस्तक हुई दरवाजे पे , शायद कचरा वाला होगा ये सोंच के मैंने अल्ट्रामयिेल्ड के दो कश जल्दी फूंके और चाय की चुस्की लेते हुए दरवाजा पे जा पहुंचा | आशा से विपरीत वहाँ पोस्टमैन खड़ा , हांथो में एक चिट्ठी लेकर , अक्सर मेरी RTI का जवाब लेके सक्सेना(डाकिया) जी आया करते थे लेकिन चेहरे के चमक बता रही थी बात कुछ और है !!

क्या बात है सक्सेना जी आज चेहरे पे अलग चमक है , क्या बात है ? अकाउंट में १५ लाख आ गए क्या ?
नहीं सर !!! आपके लिए किसी की शादी का न्योता लेके आया हूँ , इसलिए थोड़ा खुश हूँ , वरना रोज रोज मंत्रालय की चिट्ठी देते देते मैं भी बोर हो गया था

अच्छा !! कौन अपनी शादी ख़राब करना चाहता है ?

पता नहीं !!! आप RTI फाइल करके पूछ लो !!

सक्सेना जी सुबह सुबह ही शुरू हो गए आज तो

नहीं सर !! बस ऐसे ही , प्याज रुला रही पर आपको देखता हूँ तो खुश होने का बहाना मिल जाता है

शुक्रिया , दीजिये चिट्ठी

भूरे रंग के कागज़ में लिपटी वो चिट्ठी में क्या था उससे बेखबर मैंने एक और सिगरेट जला कर उसको खोलना शुरू कर दिया , इस बात से अनजान की अंदर क्या है ?

अंदर था " माशूका की शादी का न्योता "

पढ़ा और थोड़ा सा रुका , सिगरेट जलते जलते फ़िल्टर तक आ चुकी थी , अमूमन हाँथ को जलन का एहसास हो जाता था , पर उस एक चिट्ठी ने सीने की आग इतनी बढ़ा दी थी की कुछ पता ही नहीं चला |
वो शादी कर रही थी , अगले नवंबर में

हाँ !! जो गुलदान कल तक मेरा था वो अब किसी और का हो जायेगा | लेकिन मुझे दुःख किस बात का हो रहा था , मैंने उससे तो शादी की बात कभी की ही नहीं थी , फिर भी पता नहीं अंदर से खुद को खाली सा महसूस करने लगा , इतना खाली की रूह की सिसकियाँ शोर शी लगने लगी , दिल मचल उठा | अंदर से याकूब वाली फीलिंग आ रही थी , किया कुछ नहीं पर सजा मिल रही थी |

२-३ बार उसको पढ़ने की कोशिश की ताकि उसके नाम में खामी निकाल सकूँ , लेकिन नाम उसी का था | व्हाट्सप्प ओन किया , उसको तलाश लेकिन वो मिली नहीं , फ़ोन भी स्वित्चेद ऑफ , पर फेसबुक पे ३ मिनट पहले का स्टेटस बोहोत कुछ कह गया - ''फाउंड माय हीरो , फाउंड माय सोलमटे "|
सोंच रहा था शायद उसने मुझे टैग किया होगा , लेकिन नहीं ,नाम किसी और का था |

मोहब्बत की मंजिल अगर शादी नहीं है , तो मुझे बुरा क्यों लग रहा था , शायद इस बात को लेके अब कोई और ढूंढनी पड़ेगी , या शायद मैंने देर कर दी उसको समझाने में ..... ये बातें चुभ रही थी | अगर उसकी ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी थी तो मैं खुश क्यों नहीं था | लेकिन पहले इस बात का तो चले पता की वो खुश है की नहीं , शायद खुश होगी , इसलिए तो शादी का न्योता भेजा है | या वो चाहती है की मुझको भी एहसास हो मेरी गलती का ?

शाम के ५.३० बज चुके थे , मेरी कोहनी फ्रीज़ पे ६ घंटे से मेरा वजन सेह रही थी , वक़्त का पता नहीं चला और शायद अपनी गलती का भी |

कल जाके दरजी को कुर्ते का नाप दे आऊंगा , कम से कम उसकी शादी के दिन उसको अच्छा
लगूंगा , बीते ११ साल का तो पता नहीं |

नहीं लिखता तो नींद नहीं आती शायद ....

धैर्यकांत मिश्रा

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