"Jodi Tor Dak Shune Keu Na Ase Tobe Ekla Cholo Re"
तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे

ये पक्ति श्री रबिन्द्रनाथ टैगोर के सुप्रसिद्ध बांग्ला गीत से है जो की हाल ही में "कहानी" फिल्म में सुना गया था!
क्या इन शब्दों को हम अपनी ज़िन्दगी में उतार सकते है?
ये उस व्यक्ति के विचार है जो के जीवन के 29 साल गुज़ार चुका है वो भी नितान्त अकेले ।।
अकेले रहने की आदत कभी-कभी भीड़ में परेशान कर देती है।
जयपुर (३ दिन), आगरा (३ दिन), गोआ (७ दिन), मुम्बई (२० दिन), चारों धाम (११ दिन) और भी कई जगह अकेले समय बिता कर अपने और क़रीब आना हुआ।।
अकेले इंसान वो अराम से कर सकता है जो वो चाहता है, उसे किसी का इंतज़ार नहीं करना पड़ता।।
जैसे के कहते है की अति किसी की भी बुरी हो सकती है, अकेलापन आपको मानसिक रुप से क्षति ना पहुँचाए इसके लिए पहले अपने को सशक्त रुप से मज़बूत बना लेना चाहिए ।
इन पंक्तियों का जो नतीजा होता है वो इसमें आने वाली परेशानियों को भी सुखद बना देता है।।
अगर किसी को स्वयं से साक्षात्कार करना हो तो कुछ समय के लिए इन पंक्तियों को अपनाना।।
इस पर लोग कह सकते है की कोई भी लड़ाई अकेले नहीं जीती जाती, उन लोगों के लिए मेरी यह सलाह है की ज़िन्दगी जीने के लिए है, लड़ने के लिए नहीं।।

Tags: Philosophy

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