मन तो नहीं है पर गिनता हूँ आजादी के,
68 सालो की उप्लाब्धियाँ...
71 और कारगिल भले हम जीत गए हों,
पर गरीबी, भुखमरी, कुपोषण से,
हर दिन हर पल हरे है हम.
मन तो नहीं है पर.......
हम ने बनाए हैं,
विशालकाय मॉल और गगनचुम्बी इमारते..
पर लाखो लोगो अब भी घर के आभाव में,
मजबूर है सोने को फ्लाईओवर के निचे,
और कुचले जाने को फूट-पथ पे....
मन तो नहीं है पर.....
चाँद की क्या कहें हम मंगल तक पहुँच गए है,
पर तथाकथित विकास की लहर,
अब भी कोसो दूर नजर आती है,
हमारे दूर-दराज के गाँवों से...
मन तो नहीं है पर........
करने तो हम लगे हैं, अब बुलेट ट्रेन की बातें,
पर देश के हजारों गॉव,
एक अदद सड़क का इंतजार,
अपने कई पीढ़ियों से कर रहे है.....
मन तो नहीं है पर......
अब तो हम स्मार्ट शहरों का निर्माण करने जा रहे है,
पर उन हजारो गॉवो, टोलो, मुहल्लों,
का क्या????
जिन्हें सड़क, पानी, बिजली, शिक्षा जैसी..
मुलभुत सुविधा भी अबतक नहीं मिली है...
अमित सिंह