रोज नुमाइस होती है मेरी उनके सामने, देखा देखी के नाम पे ...
घूरती निगाहोँ की चाभीयाँ खोलती पर्दे मेरे दामन को , देखा देखी के नाम पे...
सवालोँ के बहाने मेरे जिस्म की खामियाँ ढूँढते , देखा देखी के नाम पे...
जब पसँद नहीं आता रंग मेरे चेहरे का अक्सर तोङ देते हैँ रिश्ते, देखा देखी के नाम पे....!!
हाँ रंग थोङा गहरा है मेरा , मानती हूँ
सब को गोरे रंग से प्यार हो , जानती हूँ
पर ये रंग मैनेँ खुद नहीं डाला है
ये तो खुद मेरे खुदा ने मुझ पे डाला है
फिर क्योँ वो फेर लेते निगाहेँ, देखा देखी के नाम पे....
सोँचती हूँ खरोच लू खुद को
फिर शायद पसंद आउँ किसी को ,देखा देखी के नाम पे...!!!
-
धैर्यकान्त
Tags:
Sign In
to know Author
- DHAIRYAKANT MISHRA