ज़िन्दगी न थी यूं तनहा
बड़ा खुश्गवार था मौसम का मिज़ाज़
रात की चादर ओढ़े सुबह अपनी जगह तलाश रहा था
कौन जानता था की सामने से कोई ख़ास आने को है
ना जाने कुछ ऐसा एहसास हुआ
धड़कने साँसों से बोल उठी की शायद
शायद जैसे मोहब्बत ने अपनी पहली सांस ली हो
मंजर बदल गया था और शायद जिंदगी भी
दिल बरसात में दिवाली मना रहा था और
धीरे धीरे हम उसके होने लगे थे या शायद उसका एहसास
ऐसा होने लगा था की रात को नींद कम और ख्वाब ज्यादा आने लगे थे
मानो जिंदगी तनहा ,बिलकुल तनहा
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- DHAIRYAKANT MISHRA