पता ही नहीं चला कब तुम सुलगते सुलगते अंदर तक पहुँच गए , जब भी जलाता हूँ तुम्हे, ऐसा महसूस होता है जैसे लबो ने मौत की सांस ली हो |
अब तो सीने की जलन इतनी बढ़ गयी है की सोंचता हूँ तुम्हारी यादों की एक छोटी सी पोटली बना के उसी में झोंक दूँ, पर डरता हूँ कही तुम फिर जल के राख न बन जाओ|
तुम भी राख बन जाओगी और मुझको तो तुमने ख़ाक कर ही दिया , सोंचता हूँ फिर से कही तुम नुझे खाकसार न कर दो |
पता है , सिगरेट बोहोत पाक होती है ,शायद इसलिए लिबाज़ सफ़ेद है उसका लेकिन अक्सर दाग इसके सीने में मिला करते है जिसको ना जाने क्यों लोग आजकल कैंसर कहने लगे हैं | कैंसर तो असल मायनों में तुम थी , हाँ तुम ! क्या कहा करती थी तुम , की साथ में जब तक सांसें और धड़कने है मैं तुम्हारे साथ रहूंगी , यही कहा था तुमने ना ?
झूठी थी तुम , माना वक़्त और सांसें कम हो रही थी तुम्हारी , पर एक बार तो बता देती |
चलो मैंने भी तय कर लिया जिस दर्द ने तुमको मौत की चिंगारी में जलाया है उसी चिंगारी से मैं रोज अपनी सिगरेट जलाउंगा और महसूस करूँगा कैंसर के दर्द में तुम्हारी टूटती साँसों को और रोज दुआ करूंगा की मौत अता करने में खुदा इस बार खुद कोई कंजूसी न करे |सीना तो जल चुका है पर दिल का एक कोना बचा के रखा था , सही टाइम पे मालबोरो एडवांस के बदले अल्ट्रामिेल्ड पीनाशुरू कर दिया था मैंने
अब ज़िन्दगी , ज़िन्दगी सी नहीं रही | तुमको याद है तुमने आखरी बार मुझसे क्या कहा था ? नहीं याद होगा ! आ रहा हूँ मैं भी , बस ये वेंटीलेटर कोई बंद कर दे | कर्ज साँसों का बढ़ रहा है .....धीरे धीरे
मैं आ रहा हूँ बस मेरा जलना और किसी का जलाना बाकी है