तेरी रुखसारों पर उदासी मुरझाये फूल से लगते हैं,
तेरी हसीन आँखों में नमी समंदर में सैलाब से दीखते हैं,
देख के तेरी मुस्कान शाख से गिरे फूल भी खिल जाया करते हैं,
तेरी हुस्नो - शबाब से वसंत के मल्हार भी जलते हैं,
तपिस ना लगे सूरज की तेरी इस सुन्दर यौवन को
तू चले तो जेठ की धुप में भी घनघोर बादल छा जाते हैं,
देख के तेरी दमकती सूरत शैतान भी गीत प्रेम के गाते हैं I
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- JITENDRA SINGH