क्यूँ अमावस की निशा सा
जागता नयनों में कोई
मंज़िलों की राह जाने
क्यूँ पड़ावों में है सोई

ज़िन्दगी का गीत अब तो
लग रहा है अनसुना सा
मन का आँगन भी है लगता
खुरदुरा सा अनमना सा

रोज़ क्यूँ राहों में आकर
जुड़ रहीं हैं नयी राहें
अब प्रतीक्षा भी थकी है
रोज़ दे दे कर दिलासा

आस के सागर पे चलकर
ज़िन्दगी हमने डुबोई
क्यूँ अमावस की निशा सा
जागता नयनों में कोई

कौन किससे है बंधा
सम्बन्ध को है क्या पता
हाँ ! मगर जीवन से जीवन
डोर ही से है बंधा

डोर टूटी राह सबने
अपनी अपनी चुन भी लीं
डोर की पीड़ा को पर
किसने कहा किसने सुना

बंधनों के पार जाकर
प्रेम ने आँखें भिगोयीं
क्यूँ अमावस की निशा सा
जागता नयनों में कोई

क्या नियति किसके लिए
किसने भला मुझको चुना
व्यूह है या लक्ष्य जो
मेरे लिए उसने बना

भय अभय के बीच का
ये द्वंद है गहरा बहुत
शब्द सबने सुन लिए पर
मौन को किसने सुना

अधर हैं निष्प्राण से
और दृष्टि भी है खोई खोई
क्यूँ अमावस की निशा सा
जागता नयनों में कोई
मंज़िलों की राह जाने
क्यूँ पड़ावों में है सोई

-शिव

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