अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है

नीड़ों से तिनकों का उड़ना
उनको बस गिरते देखा है

बिखर के फिर न जुड़ पाना
मौसम की महज इक राह दिखाना

फिर बिखराना फिर बनवाना
मौसम को करते देखा है

सप्त रंग की एक रेखा
नभो बिन्दुं पर गिरती है

इक विशिस्ट समय का अवलोकन वो
सात रंग से करती है

पंख पखेरू लेकर फिरता
नीड़ न बनते देखा है

नीड़ की बूढी दाल पे अक्सर
बारिश को गिरते देखा है

अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है

जो नहीं हो सके पूर्ण–काम
मैं उनको करता हूँ प्रणाम .
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