"ख्वाहिसों के कतार, एक जिंदगी और थोड़ी मजबुरीयाँ
जिस पल ख्वाहिसों के आँचल में बैठे जाते है, मजबुरीयाँ बिल्खालाते हँसती है
जिस पल मजबुरियो क्र काबू में होते है, ख्वाहिसे कुम्हला कर रोती है
'थोड़ी मजबुरीयाँ' हावी है 'ख्वाहिसों के कतार' पर |"
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- RITESH SINGH