ज्योत्सना हो तुम
मेरे ख्यालों की
मैं आँखें बंद करता हूँ
और तुम चारो ओर हो
उतरती हो ऊपर
कहीं आसमान से और
आकर ठहरती हो
मेरे सोते हुये चेहरे पर
मन्द - मन्द अठखेलियाँ
जो खेलती हो तुम
छन जाती हो मेरे बालों में
ये शरारत देखो तुम्हारी
कैसे मुस्कुराकर
छू जाती हो मेरे होठों को
क्या कहूँ मैं तुमसे
अगर जागता भी होता हूँ तो
सोने का बहाना करता हूँ
सराबोर मैं तुमसे
ओस की बूंदों में लिपटा
कहीं लेटा हुआ घास पर
पता है मुझे
मेरे सोने के बाद
तुम बात करती हो मुझसे
बताती हो मुझे
अपनी सारी बातें
और सुबह के चार बजे
जब छाने लगती है
लालिमा क्षितिज पर
मेरे आलिंगन में सिमटकर यूँ
बच्चे की तरह सो जाती हो तुम
ज्योत्सना हो तुम
मेरे ख्यालों की
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- ASHISH CHAUHAN
Comments (2 so far )
VISITING FACULTY
just speechless ...
October 12th, 2014
Author
Thank you, Faculty. Waah! Kya baat hai :)
October 12th, 2014