रमेश नम आँखों के साथ बरामदे में दीवार का टेका लगाए बैठा था । घर के शोर और हो हल्ले से बेखबर वह अपने बचपन की यादों में कुछ इस कदर खोया हुआ था की शायद उसे अंदाजा भी नहीं था की गीता उसे दो तीन बार आवाज़ दे कर बुला चुकी है । उसे याद आ रहा था की किस तरह खेलते हुए पाँव में चोट लग जाने के बाद बाबुजी उसे कंधे पर बिठाकर स्कूल छोड़ने जाया करते थे । माँ के देहांत के बाद बाबुजी ही तो थे जिन्होंने तीनों भाइयों का ख्याल रखा, सुबह नहलाने से रात को खाना खिलाकर सुलाने तक । बाबूजी गाँधी जी के साथ आश्रम में रहा करते थे । अक्सर रात को वो बापू की कहानियाँ सुनाया करते थे । बाबुजी बताते थे की वे बापू के चहेते हुआ करते थे । आजादी के बाद स्वतंत्रता सेनानी कोटे से डाक विभाग में क्लर्क हुए थे ।
गीता ने हाथ पकड़कर हिलाया तो रमेश के कानों में फिर वही शोरगुल सुनाई देने लगा । गीता ने इशारा कर उसे रसोई में आने को कहा । रमेश कंधे से नम आँखों को पोछता हुआ बिना किसी प्रश्न के गीता के पीछे चल दिया । रसोई में पहुँचते ही गीता बिगडती हुई बोली "बाबुजी को सीधारे हुए चार दिन हो चुके है जेठ जी से कब बात करोगे ? बाबुजी ने तो ठीकरा नहीं दिया तुम्हे और तूम बेवकूफों की तरह अपना ही खीसा खाली करने में लगे हो । जिन्हें धन दौलत मिली है उनसे एक फूटी कौड़ी नहीं निकल रही है, और तुम टूटा हुआ चश्मा लेकर भी दोनों हाथों से लुटाने में लगे हो । मैं कुछ नहीं जानती आज ही तुम जेठ जी से बात करोगे । बोलो उनसे की अकेले तुमने ही ठेका नहीं ले रखा है ।" रमेश बिना कुछ कहे सुने जा रहा था शायद उसका ध्यान कहीं और था । गीता भनभनाती हुई बोली "अकेले तुम श्रवण कुमार बने हुए हो ना मंझले भैया को कोई दुख है ना बड़े भैया के चेहरे पर कोई शिकन है ।"
रमेश रसोई से निकल कर ऊपर कमरे में चला गया । मंझले और बड़े भैया इंदौर वाले मामाजी के साथ ठहाके लगा रहे थे । बच्चे हुडदंग मचा रहे थे और दोनो भाभीयां जबलपुर वाले चाचाजी की बहु की साड़ियाँ देख रही थी । रमेश ने कमरे का दरवाजा अन्दर से बंद कर पलंग के सिरहाने पर कमर टिका ली और अचानक से फूट फूट कर रोने लगा । उसे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था । गीता से शादी हुए दस साल होने के बाद भी कभी कभी रमेश बाबूजी की गोद में सिर रख कर लेट जाया करता था, तीनों में सबसे लाडला जो था । बिजली विभाग में नौकरी लगने के बाद बाबूजी को लेकर वह भोपाल आ गया था, बाबूजी हमेशा उसी के साथ रहे । रमेश के आंसू नहीं रुक रहे थे परिवार होते हुए भी आज वह बहुत अकेला महसूस कर रहा था ।
अचानक उसकी नज़र उस टूटे हुए गोल फ्रेम वाले चश्मे पर गयी जो बाबूजी ने देहांत से पहले उसको दिया था । यही वह एक मात्र चीज़ थी जो उसके हिस्से में आई थी । बड़े भैया को गाँव की जमीन तो मंझले को उज्जैन वाला घर दिया था । गीता तो तब से ही गुस्से में है जब से वकील बाबु ने पिछले रोज सब घरवालों को बाबूजी की वसीयत पढ़कर सुनाई थी पर रमेश के लिए इन सब के कोई मायने नहीं थे । उसने सलीके से चश्मा उठा कर अलमारी में रख दिया ।
बाबूजी को गए महिना भर हो चुका था । रविवार की सुबह आजादी की लड़ाई के जमाने से बाबूजी के मित्र भगवती प्रसाद किसी सरकारी अफसर के साथ घर आये । रमेश ऊपर के कमरे में बैठा पुरानी एल्बम में तस्वीरें देख रहा था । गीता के आवाज़ लगाने पर नीचे आया । भगवती प्रसाद जी के पैर छु कर करीब के दीवान पर बैठ गया । भगवती प्रसाद बोले "बेटा ये विमल बाबु है, सरकारी मुलाजिम है बाबूजी ने तुम्हे जो चश्मा दिया था वह देखने आये है ।" रमेश को कुछ समझ नहीं आया पर भगवती चाचा के कहने पर ऊपर के कमरे से चश्मा लेने चला गया । चश्मा लेकर नीचे आया तो देखा गीता टेबल पर चाय रख रही थी । रमेश ने बिना कुछ बोले चश्मा विमल बाबु को थमा दिया । विमल बाबु ने चश्मे को बहुत सलीके से पकड़ कर उसे बहुत गौर से देखा । फिर जेब से एक कागज निकाल कभी चश्मे को तो कभी कागज मे छपी तस्वीर को देखने लगे । करीब दस मिनट के बाद मुस्कुराते हुए भगवती बाबु को इशारा किया । भगवती बाबु रमेश के हाथ पर हाथ रखते हुए बोले "रमेश यह चश्मा गाँधी जी का है । बापू की हत्या के बाद तुम्हारे बाबूजी ने स्मृति स्वरुप इसे अपने पास रख लिया था ।" भगवती चाचा अभी बोल ही रहे थे की विमल बाबु बीच में बोल पड़े "अब क्योंकि यह तुम्हारी संपत्ति है तो सरकार इसके बदले तुम्हे 1 करोड़ ₹ देगी ।" विमल बाबु का बोलना था की गीता के चेहरे पर मानों ख़ुशी की झमाझम होने लगी । वह किसी तरह अपनी ख़ुशी को छिपा पा रही थी । अचानक गीता की निगाह रमेश पर पड़ी, रमेश की दोनों आँखों से आंसू टपक रहे थे ।
लेखक Anand Bhatia (anand.bhatia@ril.com)