मेरी माताश्री की हिंदी बहुत ही अच्छी है. मुझे और मेरे बड़े भाई, दोनों को बैठा कर वह इमला दिया करती थी | बड़ा ही अजीब शब्द लगता है मुझे इमला, अनायास ही इमली की याद आ जाती है | इमली मुझे हमेशा से बहुत पसंद है, माँ चटनी बनाने के लिए लाती थी और मैं जितनी बार फ्रिज खोलती उतनी बार एक-दो बूटे चट ! फिर जब भर-भर के चेहरे पर दाने निकलते थे तो चोरी पकड़ी जाती थी । अहा बचपन ! खैर मैं इमला की बात कर रही थी, माँ हमेशा कहती थी की अगर हिंदी सही बोलोगे तो सही लिखोगे भी । "किंकर्तव्यविमूढ" एक ऐसा शब्द था जो वह हमेशा लिखने को देती थी । आज तक उस शब्द का इस्तेमाल तो किया नहीं हमने कभी पर सही मायने में उस शब्द को सुन कर हम किंकर्तव्यविमूढ हो जाते थे, फिर "आवश्यकता" लिखकर अपने दिल को सांत्वना देते थे। "आशीर्वाद" में "इ" लगेगी की "ई" ये भी हमें चिंता में दाल देता था|
कल भाई को हिंदी में गिनती लिखवा रहे थे, हमें "सत्रह" लिखना न आया, शर्म जरूर आई| "अठराह" बोल-बोल कर १८ को "अठराह" ही लिख गया| हम भी सोचते रह गए की आधा "ट" लगेगा की नहीं!