मुझे मेरे अक्स संग एक राह तो बढ़ने दो
काफी दूर है तेरी काया
जरा दर्पण में तो भरने दो
एक टूक निहारती रहीं जिन्हें यें नज़रें
उनमें अब ख्वाहिशों के पुलिंदे तो लगने दो
छन भर संग, छन भर ओझल छवि को
बढ़ते कदमों संग तो चलने दो
हरकतें भी तेरे जैसी
हसरतें भी तेरी जैसी,
वो मुस्कराना, वो गाना,
वो बिन बोले सब नज़रों से कह जाना
वो सूरज की पहली किरणों संग जगा जाना
और तिमतिमातें तारों संग नए सपने दे जाना
वहीं आहटें , वहीं मुलाकातें
हृदय में राख की अगन लगाने वाले ,
प्रेम के आखर मुझको सिखाने वाले
खुद को बदलते नहीं न चाहते मुझे बदलना
कितनी सीलन, कितनी टूटन, कितनी है घुटन
गर मन में सदा इंतज़ार तुम्हारा ही है
सागर से आतीं लहरों संग
आ जाओ तुम भी उसी तट पे
जहाँ सुखद स्वप्न लिए, संघर्षों की होंर में
हमारे प्रेम के बेल को पल्लवित होने दो
और शुरू होने दो इस प्रज्वालित डगर पे
सुखद जीवन का अंतहीन सिलसिला