जब भी किसी गाँव में कोई मंदिर देखता हूँ तो दिलों दिमाग में अपने गाँव के ठकुरबारी की यादें ताज़ी हो जाती है | मन मंदिर के उस तहखाने को दूंढने लगता है जहाँ एक छोटी सी कटोरी में चरणा अमृत रखा होता है | उस छोटी सी पीतल के कटोरी में मिश्री युक्त जल में लिपटी तुलसी के पत्तो को ही तो हम अपनी भाषा में चन्नामृत कहते हैं | फिर आखें उस बुढ़ें पुजारी की आस में स्थिर हो जाया करती है जो मंदिर के किसी कोने से आकर चन्नामृत देने के बाद माथे पर टिक्का लगा कर आशीर्वाद देगा |
बाढ़ पीडितो के लिए मेडिकल कैंप लगाने के बाद जब हम अहिल्या स्थान पहुचें तो मन में बचपन की यादें हिलोरें मारने लगी | बात तब की है जब हम दादा जी के साथ घर से बीच गाँव में पोखर किनारे अवस्थित ठाकुरबाड़ी मंदिर तक हर शाम को जाया करते थे | मंदिर पुरानी थी और पुराने मंदिर के पीछे नये मंदिर का निर्माण हो रहा था | मंदिर में राम सीता की मूर्ति का सौंदर्य देखता ही बनता है | प्रांगन में तरह तरह के सीजनल फूलों के पेड़ पौधों के बीच एक टूटी फूटी घर में पुजारी का बसेरा हुआ करता था | बूढ़े पुजारी बाबा से चन्नामृत हमें रोज मिल जाया करता, दादाजी नये मंदिर के निर्माण सम्बन्धी बातों में पुजारी जी से उलझे रहते और तब तक हम मंदिर का चक्कर लगा लिया करते |
और एक दिन फिर नया मंदिर बन कर तैयार हो गया | आज भी बालमन में दोपहर का वह भीड़ आखों में समाया हुआ है | उस दिन नये मंदिर में भगवान का प्रवेश की भागमदौर का मैं भी तो गवाह जो बना था | किसी ने कंधा पर उठा कर मंदिर का दर्शन करवाया था | मंदिर कैसा बना ये तो याद नहीं लेकिन मंदिर के दरवाजे पर झूलते हुए उस लाल मखमल के पर्दा को पहली बार मैंने वहीँ देखा था | कंधो पर से ही उसे छु लेने को लपका था लेकिन भीड़ और भजन कीर्तन के बीच मेरी चाहत मन में ही रह गयी थी | इसी बचपन की यादें के झरोखों से आज हर गाँव में ठाकुरबाड़ी के पास से गुजरते ही मन में श्रधा का भाव आ जाता है | मंदिर प्रांगन में कदम रखते ही मन को असीम शांति की अनभूती होती है | बचपन में बिताये हुए कुछ पल कभी कभार आखों के आगे पुराने फिल्मों के भातीं घुमने लगाती है |