कल मुझसे उसने फिर वही सवाल किया.
उसके कांपते लरजते होठों ने फॉर वही कहानी पूछी.
और मै हर बार की तरह इस बार उसे टाल ना पाया.
अगली कुछ पंक्तियों में आप मेरा जवाब पाएंगे,
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आज फिर मन कुछ बहक सा गया
उन बुझ चुकी यादों को तुम फिर हवा दे गयी
..… दिल फिर थोड़ा तंग सा रह गया.
तुम्हारे सवालों की गिरहों से मै सुलझ नहीं पाया
की तुम्हारी जुल्फों में उलझा रहा इतना.
पर तुम और अब उलझने भी नहीं देती.
और तुम जवाब मांगती हो अब, की बहुत देर हो रही है.
कुछ फिर से खुश्क रेत् की कसक थी
उन हज़ारों ख्वाबों की खैर,
तुम में एक आस कहीं बाकी थी शायद.
और मै दूर था.
इतना डूबा रहा तुम्हारे दरमियानो में
की तुम्हारी महक भी अब और डूबने नहीं देती.
और तुम जवाब मांगती हो अब, की बहुत देर हो रही है.
तुमने कई दफा पहले भी ...आज फिर
वही एक सवाल किया है .
मैंने कुछ नाकाफी से, कुछ खोखले जवाब भी हमेशा दिए हैं
लेकिन आज दिल में दर्द कुछ ज्यादा है.
कहीं शाम हो चली है.
और तुम जवाब मांगती हो अब, की बहुत देर हो रही है.
शायद तुम भी जानती हो मेरी हमनफ़स !
की जवाब तुम ही हो
तुम्हारे हर सवाल का जवाब
बस तुम ही हो !