नवमी कक्षा की परीक्षा चल रही थी | बाबू जी का का दिया हुआ 1 रूपया जेब में रखा दुकान का राह देख रहा था | हरबराया हुआ सा पहुंचा था परचुन के दुकान पर की साथी ने ठोक दिया | देख न ! देख न ! घूम कर देखा था और मेरी दुनिया ही बदल गई | उस नशीली आँख का तेज सह न सका, गोरे-गोरे गाल का सम्मोहन में खो सा गया | देखा तो देखते ही रह गया | यूँ कहिये पहली ही नजर में प्रेम हो गया था | दिल का चैन छिन सा गया था | रात दिन का अंतर खत्म सा हो गया | कह लीजिए पागल सा हो गया उसके मोहब्बत में | किसी ने कह दिया कि मुंबई से आई है तो हमारी भी मोहब्बत फिल्मी सी हो गई |
फिर पीछा करने का दौर शुरू होता है | उसके घर का पता लगाना, काफी मेहनत कर दोस्त को पटाना, साइकिल पर उसे बैठा कर ले जाता लेकिन अपनी भी स्टेटस था ना तो उसका घर आते ही हम साइकिल के पीछे और ड्राइविंग सीट पर हमारा प्यारा साथी उसके घर का चक्कर लगाता | एक नजर मिलते ही सारे संसार का सुख नैनो को मिल जाता | समय बीता और हमने पटा लिया था | अब हम प्रेम जाल में उन्मुक्त पंछी की तरह विचरण करने को मचलने लगे थे | घर समाज का डर सबको पीछे छोड़ हम प्यार के परिंदे बन चुके थे | फोन का जमाना आ गया था तो रोज घंटों पर घंटों फोन पर जाया करते | बातें होती एक नई जिंदगी कि उसकी खूबसूरती पर चलते होती हर हसीन पल के हर लम्हे हमारी गवाही बनते प्यार के |
अब हमारा उसके गांव का चक्कर लगाना आम बात हो गया था | प्यार मोहब्बत की बातें तो आप जानते ही हैं | जनाब जवानी के उस द्वार पर हमने अपनी सारी मर्यादा लांघनी शुरु कर दी | और वो दिन भी आ ही गया जब हमने उसे अकेले ही साइकिल से जाता देखा | रोककर उससे कहा था " I Love You " बोलो | ना नूकुर कर वो इठलाठी हुई आगे बढ़ गई थी | शर्म से उसका सुर्ख-लाल चेहरा आज भी दिल में आग लगा देती है, खैर मैं भी कहां पीछे रहने वाला था | साथ हो लिया और राह में ना जाने कितनी बार बोला था कि " I Love You " बोलो | ना ना करते करते 2 किलोमीटर का सफ़र कर हम उसके गांव के चौक पर पहुंच चुके थे | हिम्मत बढ़ चुकी थी, मेरी मेरे हाथ उसके कंधे पर और हम उसके गांव के चौक पहुँच चुके थे | लेकिन " I Love You " सुनने की किस्मत नहीं थी हमारी |
और इधर चौक पर मुहब्बत के पहरेदार खबरदार हो चुके थे | माहौल गर्मा रहा था और मैं बेखबर मोहब्बत का ताराणा गा रहा था | वो " I Love You " बोले बिना आगे बढ़ चुकी थी | सौ मीटर दूर ही तो उसका घर था और इधर मोहब्बत के पहरेदारों ने मुझे घेर लिया था | मारपीट हल्ला-हंगामा और सब कुछ से माहौल ड्रामेटिक बन चुका था | पहरेदारों ने देखा था मेरा हाथ उसके कंधो पर तो उन्हें क्रांति करने को प्रमाण की आवश्यकता नहीं थी | सैकड़ो की भीड़ में एक मेमना के भातिं मैं खड़ा हलाल होने का इंतजार कर रहा था | फिर किसी महानुभाव ने रहम दिखाया | प्रेयसी को बुलाया गया और द्रोपदी के भातिं भड़ी सभा में उसने मेरा सम्मान रख लिया | कह दिया था उन पहरेदारों को कि हमने कभी उसे परेशान नहीं किया |
प्रमाण उल्टा पड़ गया था, पहरेदार लोग शर्म से पानी पानी हो अपनी राह देखने लगे | तभी पागल की भातिं उसका चचेरा भाई आया था मदमस्त हाथी के तरह | पडाक ! एक तमाचा जड़ दिया था मुझे | लोगों की भीड़ ने और पीटने से बचा लिया था | हम साइकिल लिए अपनी राह चल पड़े | प्रेम का भूत उतर चुका था | करियर का सुनहरा अगला दो साल को बर्बाद करने का स्क्रिप्ट लिखा जा चुका था | बदला का दौर अभी भी जारी है | वह मुंबई लौट गई | अब भी जेहन में उस की याद ताजा हो जाती है | दिल बहलाने को कविता लिख लेता हूं | उसे पढ़ दीवारों को सुनाया करता हूं | अब तो दीवार भी सुनने को तैयार नहीं ! तो सोचा की अब लिख के ही आप के पास पहुंचा दूँ |