आप थोड़े ना कुछ करते हैं हमारे लिये । वो दीदी जो आपके साथ आई थी, वह हम लोगों के लिए काम करती है । आप तो बस यूं ही इधर उधर घूमते रहते हैं । सुनकर सर चकरा गया था मेरा तो पूछ बैठा था भाई किसकी बात कर रहे हो । अरे भाई वो दीदी जो आपके साथ आई थी कुछ दिन पहले । तुरंत मुझे पिछले हफ्ते का सीन याद आ गया । वो अपना इंटर्नशिप करने उस सुदूर जंगल में आई थी । हाथों में एक कलम, एक कॉपी चमक-दमक, अच्छे कपड़े और पैसो की खनक से साफ पता चलता था कि शहर के किसी संभ्रांत घराने से संबंध रखती होंगी । हमारे साथ संगठन के गाँव में घुमी थी और लोगों से कुपोषण के संबंध में इंटरव्यू किया था ।
खैर सच बताऊ तो उस लड़के के सवाल ने मुझे विचलित कर दिया । उस दिन जीवन के बहुत सारे प्रश्नों का उत्तर मुझे मिल गया । जीवन की कुछ कड़वी सच्चाई मैंने उस दिन अपनी आंखों से भाँप ली और समझ गया कि जमीन पर काम करने वालों का इस दुनिया में कितना महत्व है । उस पहाड़ी इलाके, जंगल-झाड़ में मैंने समाज सेवा करते करते अपने खून जलाएं थे, चेहरे की रौनक गायब हो गई थी, चमड़ीयां काले पड़ गए थे, फिर भी गांव-गांव घूमना, लोगों को समझाना और संगठन की मीटिंग करना और उन्हें सरकार के विभिन्न सामाजिक स्कीमों की जानकारी देना जारी रखा था ।
लेकिन उस लड़के के प्रशन ने मुझे झकझोरा था और उसकी बात कहीं न कहीं सामाजिक पृष्ठभूमि में एक सामाजिक कार्यकर्ता होने के नाते सोचने को मजबूर कर रही थी | दिल में बहुत पीड़ा हुई जब ऐहसास हुआ कि जिस जगह पर आप काम करते हैं, सालों अपनी खून जलाते हैं, अपने कैरीयर को दांव पर लगा अपने मां-बाप के सपने को तोड़ तन्हा जीते हैं और एक झटके में ग्लैमर की दुनिया आप को खारिज करवा देती है | और यही तो होता है इस देश में ! आप जिसके लिये काम करते वो आप को समझ नहीं पाते या आप उन्हें समझा नहीं पाते | काम के क़द्र की बात तो दूर दिमागी स्पष्टता तक नहीं आ पाती | आपके काम का क्रेडिट कोई और लेकर उड़ जाता है, आप एक तरफ खड़े यूँ ही हाथ मलते रह जातें हैं |
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