जून के दोपहर मे, गुजर रहा था रास्ते से,
सहसा मेरा ध्यान अटका उस कुडे के ढेर पे,
जहां कुछ बच्चे, कुछ बूढ़े, कुछ जवान
और कुछ औरत तल्लीन हैं कुछ बीनने मे....
में गर्मी से परेशान हूँ,
पांच मिनिट का रास्ता गुजरना मुश्किल हैं,
पर ऐसा लग रहा ह उसके सामने गर्मी ने अपने घुटने टेक दिये हो !
वो तल्लीन हैं अपने कम मे...
बगल से गुजरते लोग दुर्गन्ध के मारे,
नाक पे रूमाल रख तेजी से निकलता जा रहा हैं,
पर उनके उपर दुर्गन्ध का जैसे कोई असर ही नही पा रहा हो,
लग रहा ह दुर्गन्ध ने आतमसमर्पण कर दिया हैं उनके सामने !
बस वो तल्लीन हैं अपने कम में...
ये पेट के मारे वो लोग हैं,
जो अपने जीविका के लिये उस बेकार पड़े कूड़े से भी,
कुछ कम के चीज दूंढ़ लेता हैं,
उसे कबाड के यहाँ से कुछ पैसे मिल जाता हैं,
और इस जून मे दो जून की रोटी का जुगाड़ हो जाता हैं...
अमित सिंह