पप्पू यादव तो याद होगा न आपलोगों को, अरे वही पप्पू यादव जी जो खुद भी सांसद हैं और उनकी पत्नी भी सांसद है. अब पहचाने? धत तोरी के नहीं पहचाने अरे जो पहले लालू जी के पार्टी में थे और बाद अपना पार्टी बना लिए. अब तो पहचने गए होईयेगा? अब भी नहीं पहचाने, अरे जिसने लालू जी का इस बात के लिए विरोध किया था की उनका बेटा ही उनके पार्टी का वारिस होगा. जैसे की बपौती सम्पति का वारिस उसका बेटा ही होता है.
आपको ई भी याद होगा की लालू जी ने एक रैली में एलन किया था की मेरा वारिस सिर्फ और सिर्फ मेरा बेटा ही होगा. पप्पू यादव ने जब इसका विरोध किया की पार्टी किसी की बपौती संम्पति नहीं होता हैं, तो उसे पार्टी से निकल दिया गया था. अब तो आपलोग पक्का पहचान गए होंगे.
लालू जी ने उस जो रैली में बोले थे उसे आज कर के दिखा दिए. बेचारा पप्पू यादव तो कहीं का नहीं रहा. लालू जी के दोनों बेटा बिहार के दुसरे और तीसरे नंबर के आदमी बन गया है. इसे कहते है न मर्दों वाली बात... चाहे कोई पाँच बार का MLA हो या अपने क्षेत्र में बहुत काम करता हो इससे क्या फर्क परता है. मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री या नंबर दू व् तिन बनने के लिए लालू जी का पत्नी और बेटा होना जरुरी होता है. चाहे उ अनपढ़ हो या नौवी फेल.
हमारे दरभंगा के अलीनगर से एक विधायक हैं अब्दुल बारी सिद्दीकी जी कई बार से पार्टी के विधायक है, विकट से विकट परिस्थिति में भी वो अपना सीट निकाल कर दिए है. वो इसलिए की वो इमानदार हैं और क्षेत्र में जम के काम करते हैं लेकिन उपमुख्यमंत्री उन्हें नहीं बना कर तेजस्वी को बनाया जा रहा. काहे की पार्टी लालू जी की है और तेजस्वी उनका बेटा है और लालू जी अपने पार्टी को अपनी बपौती संम्पति समझते हैं.
ई लालू जी जो है न झूठ-मुठ का मुस्लिमो का हितैसी बने फिरते है और उनके भावनाओं का भड़का के सिर्फ वोट बटोरते है, अपने पत्नी और बेटों के लिए. अगर ऐसा नहीं होता तो अब्दुल बरी सिद्दीकी को उपमुख्यमंत्री बनाया जाता. मैं ये दावे के साथ कह सकता हूँ की उनके पार्टी में अभी सबसे योग्य कोई है तो वो अब्दुल बारी सिद्दीकी है. ये उनके लिए अच्छा मौका था मुस्लिम समुदाय को सम्मान देने का लेकिन लालू जी ने इसे पुत्र मोह में गवां दिया.
अमित सिंह