हफ्तों पहले से घाट बनाना
पुरे बारी का केला थम्ब को इसके लिए कट डालना
छठ घाट को अछि तरह सजाना
दूसरों से अच्छी घाट बनाने का होड़ लगाना
सब याद है, पर अबकी वो घाट हमसे बहुत दूर है....
शुबह वाली हाट से पूजा का सामग्री लाना
पापा से जिद्द करके दो के बदले चार नारियल लाना
सस्ता हो या महँगा सबसे मोटा वाला ईख खरीद्वाना
बहन के लिए सबसे अच्छा वाला समा-चकेवा खरीदना
सब याद है, पर अबकी वो हाट हमसे बहुत दूर है....
शाम को घाट पर माँई से पहले पहुँचना
भाई-बहनों के साथ मिल के अरक सजाना
दीप से घाट को अच्छी तरह सजाना
तेल ख़त्म होने पर घर से दौर के तेल लाना
सब याद है, पर अबकी भाई-बहन हमसे बहुत दूर है....
शुबह फिर माँइ से पहले घाट पहुँचना
अरक सजाना व् दिया और अगरबती जलना
सैकरों लोगो को एक साथ पोखर में खरा देखना
सूरज उगने का इंतजार करना
सब याद है, पर अबकी वो पोखर हमसे बहुत दूर है....
पुआल का नुरा बना के उस पे दिया रख के पोखर में डालना
घर पे पहुँचते ही सबसे पहले नारियल तोडना
भाई-बहनों से ज्यादा नारियल खाने को झगड़ना
माँई का उपवास के बावजूद पहले हमलोगों का खिलाना
सब याद है, पर अबकी माँई हमसे बहुत दूर है....