किसी भी व्यक्ति का धर्मपरिवर्तन लोभ दे के या जबरदस्ती करवाना सही नहीं हो सकता है और उसका पुरजोर विरोध होना चाहिए. घर वापसी के बात पर तो सरे के सरे सेक्युलर, बुद्धिजीवी, मीडिया वाले, और तथाकथित सेक्युलर दलों ने जोर- शोर से विरोध किया, गलत तरीके से हो रहे धर्म परिवर्तन का विरोध होना भी चाहिए. लेकिन मुझे ये बात समझ में नहीं आता की हमारे देश में रोज कोई न कोई हिन्दू, मुस्लिम, इसाई या किसी अन्य धर्म को अपनाते है. लेकिन इस पर न तो कोई मीडिया न ही कोई सेक्युलर बुद्धिजीवी ही विरोध दर्ज कराते नजर आते है. और मै ये दावे के साथ कह सकता हूँ की धर्मपरिवर्तन हो या घरवापसी 95 प्रतिशत लोगो को कोई न कोई लालच दे के, गुमराह कर के या जबरदस्ती ही करवाया जाता है.
इसलिए सेक्युलर, बुद्धिजीवियों और मीडिया के लोगो से ये कहना चाहता हूँ की अगर घरवापसी गलत है तो धर्मपरिवर्तन भी गलत है. अगर आप घरवापसी का विरोध करते हैं तो धर्मपरिवर्तन का भी विरोध करे. अभी कुछ महीने पहले उत्तर प्रदेश के रामपुर में लगभग 800 हन्दू मुस्लिम बनाने की बात कर रहे थे वो भी अपना घर बचने के लिए. लेकिन इस बात के लिए अबतक एक लेख नहीं पढ़ी है हमने. न ही किसी सेक्युलर और बुद्धिजीवियों को इसका विरोध करते देख है. यहाँ तक की अपने को दलितों की मसीहा बताने वाली मायावती भी कही दखाई नहीं दी थी.
अलगाववादी नेता मसरत आलम की रिहाई पे सेकुलरो का कहना था ये राजनितिक बंदी थे. जब उन्ही के अगुआई में पाकिस्तानी झंडा फहराया जा रहा था. तो सब के सब तथाकथित सेकुलरों की बोलती बंद हो गयी... अकरम हुसैन जैसे पेंटर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पे धार्मिक भावनाएं भरकाने काम किया. लेकिन इन सेक्युलरों और बुद्धिजियो की आवाज कही नहीं सुनाई दिया. ऐसा सिर्फ इसलिए होता है की इनलोगों को लगता है की हम इन बातों का विरोध करेंगे तो हमारा सेकुलरिज्म खतरे में पर जायेगा. अब आप खुद सोच सकते है की हमारे देश में सेकुलरिज्म का क्या मतलब है.
अमित सिंह