तुझे राग बना के गुनगुनता रहता हूँ,
हर लम्हें में हजारों दफा तेरा नाम दोहराता रहता हूँ,
कहने तो तुझसे बातें इतनी है बाकी की सदियाँ भी कम लगती है मुझे
कह नहीं सकता तुझसे हाल - ए - जिगर
शायद इसीलिए पन्नों पे अपनी हर राज उभारा करता हूँ,
तुझे कहाँ मालूम है की हम जी रहे कैसे
तू दूर है मगर हम भी नहीं हैं अकेले,
तेरी यादों के साये संग बागों में हर शाम बिताया करता हूँ,
तुझे राग बना के गुनगुनता रहता हूँ......!!!
Sign In
to know Author
- JITENDRA SINGH