तेरा पीड़ चुराने की आरजू में
ये कैसा दर्द उधार आप ही ले बैठे हम,
निकले तो थे तुझे हँसी का आशियाँ दिलाने
ये कैसा आब-ए-चश्म आप ही ले बैठे हम,
संजोना चाहा ख्वाब नैनों में तेरे खुशियों के
न जाने कब आप ही तुझको ख्वाब अपना बना बैठे,
विभावरी काबिज हो तेरी अब्सरों पे
ये जद्दोजहद जो हमने की,
दर्मयाँ इस जुस्तजू मालूम न चला हमको
कब आप ही अपनी रैन उड़ा बैठे,
तेरा पीड़ चुराने की आरजू में....।।
Sign In
to know Author
- JITENDRA SINGH