मेरा तुझसे - तेरा मुझसे ये जो नाता है,
नादाँ दुनिया भला कहाँ समझ पाया है,
गुस्से में खाना तुम नहीं खाते कभी
तो भूख मुझे भी कहाँ आयी है आजतक,
सर्दी तुझे लगती और बीमार मैं हो जाता हूँ,
उदासी तेरे पेशानी पे दस्तक दे
तो मुझे रोना क्यूँ आ जाता है,
आजकल ये मसला मेरे समझ में नहीं आया है,
हाँ थोड़ा अजीब सा है रिस्ता हमारा
और थोड़ा अटपटा भी,
चाहे कोई भी राज रहे तुझसे कहाँ छुपा पाया मैं,
एक पन्ने के सिवा मेरी जिंदगी की किताब पूरी तो तेरे पास रही,
तुझसे गुस्सा भी करूँ तो समझ नहीं आता क्यूँ
तुझसे हर दफा सिर्फ हार ही जाता रहा हूँ,
एक साथ एक गर्भ में पले नहीं फिर भी
लक्षण सारे जुड़वाँ से ही रहे,
मानो जैसे मेरी जान ही तुझमे कैद हो गई हो,
तुझसे दूर होने से ही जिंदगी थम सी जाती है,
हाँ मैं कभी जुबाँ से बयाँ नहीं करता मगर
तेरेआँखों से हर अनकही दास्ताँ पढ़ जाता हूँ,
तुझे हँसाने की कोशिशें भी
खुद को खुश रखने की खातिर करता जाता हूँ,
एक तेरे हँसने से अपनी उम्र कई साल बढ़ा पाता हूँ,
जो वर देहि मोहे जगत पालक कोई
तो तेरी दोस्ती से ज्यादा कुछ और नहीं बोल पाता हूँ ।।।।।।