बहुत सारे लेखक साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटा दिए है और बहुत सरे लाइन में है लौटने के लिए. किसी भी गलत बात का विरोध करने का कई तरीके हो सकते हैं इसमें अवार्ड लौटना भी एक हो सकता है. मैं इसका विरोध नहीं करता लेकिन पश्चिम बंगाल के एक हिन्दू ग्राम कैनिंग को 2013 में मुस्लिम धर्मान्धो ने जला दिया था. उस समय ये बुद्दिजीवी लेखकों ने विरोध क्यों नहीं किया था??
पश्चिम बंगाल में जब तस्लीमा नसरीन की किताब बैन हुई तो ज्यादातर लेखक चुप थे. जब उनके खिलाफ पांच फतवे जारी किए गए, जब उन्हें बंगाल से बाहर निकाल दिया गया, जब उन्हें दिल्ली में महीनों तक नजरबंद रखा गया और दिल्ली छोड़ने पर मजबूर किया गया, जब टीवी पर उनका मेगा सीरियल बैन किया गया तो ज्यादातर लेखक चुप थे. वो अपनी अभिव्यक्ति की आजादी और यहां रहने के अधिकार के लिए अकेले संघर्ष करती रही लेकिन तब ये तथाकथित बुद्दिजीवी लेखक खामोस ही नहीं थे, बल्कि सुनील गांगुली और शंख घोष जैसे प्रसिद्ध लेखकों ने बंगाल के तत्कालीन सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य से उनकी किताब को बैन करने की अपील की थी.
हमारे यहाँ के तथाकथित सेकुलरों की एक समस्या है की वो हिन्दू धर्मान्धो का विरोध तो पुरे जोर-शोर से करते हैं. लेकिन जब बात मुस्लिम धर्मान्धो की आती है तो ये चुप्पी साध लेते हैं. इनका यही चुप्पी सीधे-साधे हिन्दुओं को कट्टरपंथ की ओर जाने के लिए प्रेरित करती है.
भारत में मुस्लिमों के साथ उतनी समस्या नहीं है जितना की तथाकथित वामपंथी, सेकुलरों और बुद्दिजीवियों के द्वारा प्रचार किया जा रहा है. अगर ऐसा होता तो दुनिया के सभी मुस्लिम बहुल देशों में दुसरे धर्म के लोगो की जनसंख्या में जिस तरह से कमी आई है उसी तरह से भारत में में भी अल्पसंख्यकों की जनसंख्या में कमी आई होती. लेकिन इसके उलट भारत एक मात्र ऐसा देश है जहाँ अल्पसंख्यकों की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है.
अगर भारत में अल्पसंख्यकों को इतनी निर्ममता से सताया जा रहा होता तो यहाँ के मुस्लिम दुसरे मुस्लिम देशों में शरण ले रहे होते. जैसा की पकिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिन्दू वहां के बहुसंख्यकों के अत्याचार से तंग आकर भारत में शरण लेने के लिए मजबूर हैं.
वैसे अगर आपके नजर में हिन्दुओं को गलत साबित करना, उनके देवी देवताओं को गाली देना, उनके धर्मग्रंथों को गलत कहना, उनके आस्थाओं को गलत साबित करना व् सिर्फ और सिर्फ हिन्दू कट्टरपंथ का विरोध करना ही सेकुलरिज्म है, तो ऐसा सेकुलरिज्म आपलोगों को ही मुबारक हो. “तो मैं सेक्युलर नहीं हूँ”