वो आये गए , गए और फिर आये ,
इस आने जाने की जल्द बाजी में ,
बाजी हार कर भी ,
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थमा हुआ सा लगता हूँ क्या ??
वक़्त है ग़र 'ढक्कनिया'
तो ज़रा वक़्त
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इस शहर की हवा में घुला हुआ है एक धुँवा सा
दौड़-ऐ-जिंदगी में हर घड़ी इंसान
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दास्ताँ-ए-इश्क़ लिखेंगे 'अपनी' गर कभी,
देखना 'खलनायक' के नाम से तुम
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उलझने हज़ार पर यकीन है बरकरार
ये इश्क़ नहीं तो और क्या है सरकार
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तुम्हारी हर ऊटपटांग बात पर
मेरा तुम्हें माफ़ कर देना ...... 'इश्क़
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ज़िद्दी है ये रास्ते और मंजिलें भी कम नहीं ज़िद्दी
तो हम भी "अपनी
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'शोर' करती रात की खामोशी
कटिंग चाय - हाथ में कश और साथ हैं यादें
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पेश है सच झूठ और झूठ सच बनकर
फ़रेबी दुनिया है यार मेरे तो चलना थोड़ा बचकर
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ना तंत्र ना मंत्र ना ही किसी ताबीज़ से
सुकून-ऐ-रूह आया तो बस जाम होंठो पर
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पूछा गया हमसे कल प्रेमी को लेकर क्या अपेक्षाएं हैं तुम्हारी
हमने भी कह
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दिन में तो लिखते है ये दिमाग वाले
बयाना राज़-ए-दिल क्या लिया कभी रात
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मंजिलो का पता मत पूछ 'खानाबदोशों' से
होती है 'बेपनाह मुहब्बत'
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कहानी तो बड़ी रोमांचक है
बस ये किरदार ही है जो हर बार दग़ा दे जाते
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यूँ तो इश्क़ से नज़रे चुराती रही हूँ मैं
और हुआ ऐसा भी है रेत पर एक नाम
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जिस बात का डर था वही हुआ
जुड़ा नाम जब साथ हमारे वो भी गली गली बदनाम
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मंजिलों को भी कभी है आसान राह रास आयी
ये सफर पाँव के छाले मांगता
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और फिर से राज़ को राज़ ही रहने दिया है
खत तो लिखा है और पुराने बक्से के नाम
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जीतना है तो 'जोरदार' जोर लगाओ
महफिल-ए-जिंदगी में मुजरे नहीं
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यही है मेरा तजुरबा-ए -जिंदगी
बस इतना सा करम करिये
खुद को आज़ाद
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