आजकल की बात छोड़ दे तो पहले तन्ख्वायें उतनी नहीं हुआ करती थी। मुट्ठी बांधकर और मन मारकर चलना पड़ता था। घर की औरतें तो सारा दिन आमदनी और खर्च के तराजू का संतुलन बैठाने की जुगत में ही रहा करती थी। सब्जी तरकारी के लिए सब्जी मंदी के हज़ार चक्कर काट लेती थी, क्या पता अगले ठेले पर कुछ कम में मिल जाये। बच्चों की बे फिजूल की मांगों पर उन्हें कभी डांट कर तो कभी प्यार से घर के आर्थिक हालात के बारे में समझा दिया जाता था । बस इसी तरह रूपये दो रूपये बचा कर घर की economy को recession में jaane से बचा लेती थी। कुल मिलाकर जितनी लम्बी चादर हो उतने ही लम्बे पैर पसारने चाहिए ये बात हर घर की औरत को पता थी।
पर शायद यही बात हमारे economist प्रधानमंत्री को नहीं पता। अर्थव्यवस्था का बेडागर्क होने की कगार पर है। रुपया अपने निम्नतर स्तर पर जा बैठा है। वित्तीय घाटा की खाई दिन ब दिन चौड़ी होती जा रही है और PM साहब है की मुफ्त की रेवडिया बांटने में लगे है। सरकारी कर्मचारियों को 10% DA में वृद्धि का तौहफा देने के बाद 7th वेतन आयोग का उपहार भी दे डाला। वोट पाने के लिए सरकारी खजाने को खाली किया जा रहे है। अगली सरकार जब खजाने का दरवाजा खोलेगी तो उसे मिलेगा "बाबाजी का ठुल्लू"।
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ab us ki to currency hai dollar jiski maang duniya bhar mein hai..to wo log zarurat padne pe aur dollar chaap dete hain (ye janna zaruri hoga ki absaari currencies FIAT hain yaneki gold ya sona nahin rakhna padta collateral mein)..to wo chapte hain aur china wale dollar ke badle unko saaman de dete hain..rupaye ki koi value nahin kyunki hamare desh ki abhi utni value nahin..chana ki currency renminbi ki value dheere dheere badh rahi hai..
to mere kehne ke matbal y hai ki jitni economics maine padhi hai timepass ke chahkkar mein pichle 3-4 salon mein, uske hisaab se hamare PM aur FM ko fail nahin kar sakte..banki economics ka to bhagwaan hi rakhwaala hai waise sabhi maante hain..koi nahin janta is kala ko..