ये कहना भूल गया था की तुम याद शायद बहुत आओगी , कभी यादों के बदले तुम भी आ जाना अगर मुमकिन हो सके तो , मुझको पता है की शादी के बाद तुम्हारा पति तुम में सीता का प्रतिविम्ब देखने की भरपूर कोशिश करेगा , समाज में आजकल यही ट्रेंड है , और मुझको पता है यू वोंट लेट हिम डाउन |
लेकिन फिर भी कभी मेरा मन हुआ तो मिलने जरूर आना , झूठा ही सही , नयी दिल्ली को लंका जैसा ही समझना | जब साथ तुम्हारा था तो ये बात कभी जेहेन में आई भी नहीं की कल को अगर दूर जाना पड़ा तो क्या होगा ? शायद प्लानिंग पहले कर लेनी थी , चलो तब नहीं तो अब सही
तुम्हारी तस्वीर भी नहीं रही मेरे पास , एक वायरस बिना बताये ब्लैकबेरी में आया और अपने साथ तुम्हारी तस्वीर ले गया , पीछे सिर्फ *autorun छोड़ गया है ,अब उसी में तुमको देख लेता हूँ , और मजे की बात है की लाख चाहूँ ये डिलीट भी नहीं हो रहा है , चलो कुछ तो है तुम्हारा मेरे पास | पता नहीं कौन सा वायरस था , पर जो भी था मुझको समझता था , खुश होके मैंने अब कभी भी एंटीवायरस नहीं डलवाने का फैसला लिया है | तस्वीर थोड़ी सी धुँधली है पर यादों की धुप पड़ते ही सब कुछ साफ़ हो जाता है , क्या तुम भी मुझे इतना ही मिस कर रही हो ?
शायद कर रही होगी , शायद नहीं कर रही होगी .... तुम्हारी दी हुई घडी भी रुकी हुई है , इनका भी आपस में मिलना बंद हो गया है , सब धरने पे बैठे हुए है , घंटे वाली सुई १२ पर है और मिनट वाली ६ पर , सेकंड वाली सुई तो सदमे से टूट गयी है ..... बैटरी भी लगायी , मगर बाद में चला पता इनका अनशन वाला धरना है
मैं टूट रहा हूँ , आँखों की नमी बुनियाद खोखला कर रही है या तो तुम अपनी यादों को कहो की दो हफ्ते की छुट्टी ले ले , नहीं तो मैं ये वतन छोड़ के कही चला जाऊंगा जहाँ GPS भी काम नहीं करता हो , डरता हूँ कही तुम्हारी यादें मुझे ढूंढते वह भी ना पहुँच जाये |
मैं अब सोना चाहता हूँ लम्बे वक़्त तक ....
धैर्यकांत मिश्रा